गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-9 : अध्याय 12
प्रवचन : 5
पत्थर तो धातु के रूप में और जो हमने उसमें अपनी मानसिक कल्पना से रूप निकाले उनका नाम हुआ प्रत्यय। संस्कृत माने यही होता है कि भलीभाँति हम उसको संस्कार दें। एक हीरा निकला। उसमें-से मिट्टी को धो दिया, दोषापनयन कर दिया। जहाँ कहीं कमी थी उसको पूरा कर दिया। जो बेडौलपना था उसको दूर कर दिया। जो छेद नहीं था उसमें छेद कर दिया । दोषापनयन, गुणाधान और हीनांगपूर्ति हीरे के ये तीन संस्कार कर दिये गये-वह काम का हो गया। इसी तरह शब्द तो पहले से हैं परन्तु वे मिट्टी में दबे हुए हैं-बेडौल को सुडौल बना देते हैं, मिट्टी धो देते हैं। कोई भी नया शब्द नहीं निकलता है। यह जन्म और मृत्यु का दुनिया में कोई अर्थ नहीं है। यह केवल अपने सुख के लिए जन्म को हम अच्छा मानते हैं। यह जन्म और मृत्यु का दुनिया में कोई अर्थ नहीं है। यह केवल अपने सुख के लिए जन्म को हम अच्छा मानते हैं और कभी-कभी ऐसा समय आता है, जब जन्म को बुरा माना जाता है। मृत्यु को हम लोग सामान्य रूप से बुरा मानते हैं। पर कोई-कोई समय आता है जब मृत्यु को अच्छा माना जाता है। इस सृष्टि का यही क्रम है। यह सब-की-सब सेना जो इकट्ठी हुई है कौरवी और पाण्डवी-ये जैसे पतिंगे आग में गिरते हैं ऐसे अपने अदर्शन के लिए, विनाश के लिए भगवान के मुख में ‘अभिविज्वलन्ति वक्त्राणि’-यह क्रियापद नहीं है यह ‘शत्रन्त’ है। वक्त्राणि का विशेषण है। उसमें प्रवेश कर रहे हैं। और वह भी ‘समृद्धवेगाः’-बड़े बेग से, जोर से कहाँ जा रहे हैं? मालूम तो नहीं पड़ता है। घड़ी में एक-एक सेकेण्ड सुई चलती है-एक-एक-एक मिनट चलती है। घण्टे चलती है। घण्टे-घण्टे चलती है। चौबीस घण्टे पूरे करती है। यह घड़ी चल-चलकर हमको भी चला रही है। घड़ी जितनी चलती है, कम-से-कम उतने वेग से तो हम चलते ही हैं-और कहाँ जा रहे है? बस उसकी याद मत करो, नहीं तो डर जाओगे। घड़ी कहाँ जा रही है? घड़ी की एक डिजाइन बनी-यह शरीर का आकार हुआ और वह कितने चक्कर लगाने की उसमें योग्यता है यह साँस लेने के लिए धौंकनी कितनी चलेगी? वह हुआ। और किस-किसकी घड़ी है? यह देखा इसकी कितनी आयु है और कितनी गरमी-सरदी में वह काम करेगी। ज्यादा सरदी में जाने पर ठप्प हो जायगी। ज्यादा गरमी में जाने पर जल जायगी। यह आपकी घड़ी जैसी होती है, आपके शरीर की धड़कन जो है-यह चलती रहती है। और पेट में ही चलनी शुरू होती है। मृत्युपर्यन्त चलती है। यह घड़ी की सूई है, कितने चक्कर लगायेगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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