गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-9 : अध्याय 12
प्रवचन : 3
यह बात बार-बार दुहरायी जाती है। लेकिन जगत का उपादान कारण माने मैटर, मसाला-जिससे यह दुनिया बनी है वह ईश्वर है, यह बात हम लोगों के ध्यान में जल्दी नहीं बैठती है। यही श्रीकृष्ण ने अर्जुन के लिए किया। दिखा दिया उसको- अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम्। अनेक मुख हैं, अनेक नयन हैं। अनेक अद्भुत वस्तुएँ जो कभी नहीं देखी गयी हैं, वे उनके शरीर में हैं। अनेक दिव्य आभरण धारण किये हुए हैं और अनेक आयुध उठाये हुए हैं। वे आयुध भी दिव्य-ही-दिव्य हैं। दिव्य माल्य और वस्त्र धारण किये हुए हैं। दिव्य गन्ध का अनुलेपन है। उनके शरीर में सब आश्चर्य-ही-आश्चर्य हैं। न कहीं ओर है न छोर। न आदि है न अन्तः ‘विश्वतोमुखम्’-जिधर देखो उधर भगवान-ही-भगवान। इसको अभूत उपमा बोलते हैं-जैसा कभी न हुआ हो ऐसा। अभूतोपमालंकार होता है शास्त्र में। इसको मम्मटने तो अतिशयोक्ति के रूप में स्वीकार किया है और दूसरे आचार्यों ने अभूतोपमा के रूप में ही इसको स्वीकार किया है। क्योंकि ऐसा उपमान सृष्टि में और कहीं मिलता नहीं इसलिए कल्पना की- दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता। हजारों सूर्य एक साथ उदय हों और उनका प्रकाश, उनकी आभा चारों ओर फैल जाये तो कदाचित् वह सउ विराट-रूप के सदृश हो सकती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 11.10-12
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