गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-9 : अध्याय 12
प्रवचन : 2
यहाँ निद्रा शब्द का अर्थ प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा, स्मृति-इन पाँचों वृत्तियों के साथ है। जब चाहे तब देखे और जब चाहे तब न देखे। कोई बात कर रहा हो-उसका मन हो तो सुने, उसका मन न हो तो न सुने। श्रोत्र-वृत्ति पर भी निरोध है। गुडाकेश का अर्थ है कि अपनी सम्पूर्ण चित्तवृत्तियों को प्रमाण, विकल्प, विपर्यय, निद्रा, स्मृति-इनको अर्जुन अपने वश में रखते हैं. जैसे बड़े-बड़े योगी लोग वृत्तिनिरोध करने में समर्थ होते हैं वैसे अर्जुन भी वृत्ति निरोध करने में समर्थ है। इसलिए गुडाकेश-अर्जुन के अधिकार का सूचक गुडाकेश शब्द है। एक गुडाकेश शब्द का और अर्थशास्त्र में प्रसिद्ध है। उद्योग पर्व में महाभारत में इन नामों के अर्थ दिये हुए हैं। ‘गुडं ब्रह्माण्डम् आप्ति व्याप्रोति इति गुडाकः शिवः, स ईशो यस्य।’ गुडाक माने शंकरजी-यह ब्रह्माण्ड गोल है इसमें व्याप्त होने के कारण शंकरजी का एक नाम है गुडाक। वह है ईश जिसके। इसका अर्थ है कि अर्जुन बड़े वीर हैं। उन्होंने अपने युद्ध-कौशल से शंकर जी को प्रसन्न कर दिया। पूजा नहीं की। मन्त्र का जप नहीं किया। चन्दन, अक्षत, बेलपत्र शंकरजी को नहीं चढ़ाये। दोनों में लड़ाई हो गयी तो अपनी बाणविद्या से अर्जुन ने शंकरजी को संतुष्ट कर दिया। और उन्होंने प्रसन्न होकर अर्जुन को पाशुपत अस्त्र दिया जो अमोघ होता है। अपनी वीरता, वीर्य के द्वारा शंकरजी को भी सन्तुष्ट करने वाले हैं अर्जुन। ये भगवान के बहुत प्यारे हैं। सौन्दर्य का वाचक भी गुडाकेश शब्द है, और संयमी, योगी का वाचक भी गुडाकेश शब्द है और जिसको देवता का आधिदैविक प्रसाद प्राप्त है, उसका भी यह वाचक है। केशवाला अर्थ तो अधिभौतिक है। शंकरजी वाला अर्थ आधिदैविक है और निद्रा को जीतने वाला जो गुडाकेश शब्द है वह आध्यात्मिक है। इसका अर्थ है अर्जुन आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक-तीनों प्रकार की योग्यता से सम्पन्न है। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण उन पर प्रसन्न होकर कहते हैं-अर्जुन, देखो मेरे सैकड़ो रूप, हजारों रूप। माने हमारे विश्वरूप का दर्शन करो। जैसे जीव एक शरीर होता है, वैसे यह सम्पूर्ण विश्व ईश्वर का शरीर है। भगवान शरीरी हैं। जैसे इस शरीर में जीव शरीरी होता है, वैसे विश्व में ईश्वर शरीरी है। सम्पूर्ण विश्व में उसके हाथ, उसके पाँव, उसके सिर हैं, जैसे वेदों में सहस्रशीर्षा पुरुष का वर्णन है। कहा गया है-उनके हजारों सिर हैं, और हजारों हाथ हैं और हजारों पाँव हैं-वहाँ हजार की गिनती नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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