गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-9 : अध्याय 12
प्रवचन : 1
‘पश्य मे पार्थ रूपाणि’-जिसके द्वारा किसी का निरूपण होता हो, उसको रूप कहते हैं। ‘रूप्यते अनेन इति रूपम्’। जिसके द्वारा हम समझ सके, कि कोई कितना बड़े हैं, उनकी लम्बाई–चौड़ाई कितनी है; उसकी आयु कितनी लम्बी है, उसके अंग–प्रत्यंग कितने बड़े हैं–जिनके द्वारा हम किसी को समझ सकें उसका नाम है। रूप देखो, मेरे रूप सैकड़ों-हजारों देखो। जैसे जादूगर-बोलता है न! देख लो, देख लो!! वैसे बड़े मायावी-मायापति बोले-देख लो, देख लो- पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रथः। इनके प्रकार अनेक हैं-हैं एक चीज पर विधा अनेक है। विधा माने प्रकार। विशेष अवधान के लिए जो विशेष प्रकार होता है उसे ‘विधा’ बोलते हैं। धारणा-ठीक-ठीक अवधारणा हो जाय किसी वस्तु की , उसकी रीति का नाम ‘विधा’ होता है। इनकी रीति अलग-अलग है-एक आम का पेड़ है, एक बड़ का पेड़ है, एक अंगूर की लता है। एक धरती है पर ये सबके सब परमात्मा को दिखाने वाले दिव्य हैं-सब में दिव्यता भरी हुई है। ‘नाना-वर्णाकृतीनि च।’ इनके रंग रूप निराले हैं। वर्ण-माने रंग रूप और आकृति माने आकार। जैसे एक आदमी का रंग साँवला है या गोरा है या पीला है-वह तो है वर्ण। और आकृति है-वह आडी है कि टेढ़ी है कि लम्बी है। नाक नुकीली है कि चपटी यह आकृति है। नाना प्रकार के रंग देखो, नाना प्रकार की आकृतियाँ देखो। सबकी शक्ल-सूरत बिल्कुल अलग-अलग-सबका नाम, रूप अलग-अलग, सबका आकार-प्रकार अलग-अलग-नाम-रूप क्रियात्मक समग्र प्रपंच-यह देखो मेरा ऐश्वर्य रूप है। बहु स्यां प्रजायेय।[1] यह मैं सबके रूप में प्रकट हो रहा हूँ। केवल लौकिक ही नहीं-जो कुछ अलौकिक है सो भी देखो! ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ छान्दोग्य. 6.2.3
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