गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-8 : अध्याय 11
प्रवचन : 9
अरे भारतो, प्रतिभा-सम्पन्न पुरुषों! उठो, जागो-अपने जीवन में अग्नि के ज्वलन-प्रकाश का आवाहन करो, यह भगवती श्रुति बोलती है। जैसे सब पुरुषों में पौरुष के रूम में भगवान हैं। बोले फिर हमारे अन्दर भगवान हों तो पुरुषों की बराबरी हो गयी। भगवान ने कहा नहीं-नहीं, पुरुषों से माताओं तुम बड़ी हो, महिलाओं, तुम्हारे अन्दर मैं एक नहीं सात रूप में रहता हूँ। एक स्त्री के भीतर सात रूप में भगवान। कीर्तिः श्रीर्वाच्क नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा।[1] अब आप देखो, आप भगवान की विभूति हैं कि नहीं? हम आपका नाम लेकर नहीं बोलते। आप स्वयं सोच लीजिये? आप भगवान की विभूति हैं कि नहीं है? ‘नारीणाम्’ जितनी भी स्त्री जाति है- विद्या समस्तास्तव देवि भेदाः स्त्रियः समस्ताः कला जगत्सु।[2] यह सब जगत्-जननी जगदम्बा का रूप है। इसमें भगवान किस रूप में रहते हैं। पहले बताया कीर्ति। आपके पास में, पड़ोस में, दूर, दूसरों के मुँह में आपका कीर्तन कैसा है? लोग भला कहकर आपका वर्णन करते हैं कि नहीं? यह भली स्त्री है। यह जो आपके अन्दर भलापन है वह भगवान की विशेष विभूति है। फिर बोले ‘श्री’ जहाँ पाँव रख दिया, वहाँ लक्ष्मी आ गयी। हम कई अच्छे घरों की बात जानते हैं। लोग बताते हैं महाराज, हमारे घर में तो पहले कुछ नहीं था। जब से इस बच्चे के पाँव हमारे घर में पड़े हैं और लक्ष्मी अपने आप ही हमारे घर में आने लगी है। ‘श्री’ माने लक्ष्मी लेकिन श्री का अर्थ सौन्दर्य भी हैं आप अपने को ठीक ठाक रखती हैं कि नहीं? शारीरिक सुन्दरता-असल में चामकी सुन्दरता-सुन्दरता नहीं है। आँख की सुन्दरता सुन्दरता नहीं है। ओठ की सुन्दरता-सुन्दरता नहीं है-जो चरित्र का सौन्दर्य है वही वास्तविक सौन्दर्य है। जहाँ चारित्र्य है वहाँ सुन्दरता का निवास है। इसी से मनुस्मृति में तो ऐसे कहा- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।[3] जहाँ नारी का आदर है, वहाँ देवता लोग अपने आप ही आते हैं। स्वयं लक्ष्मी आपके घर में स्त्री के रूप में निवास करती है। परन्तु अपने रूप-सौन्दर्य को भी ठीक बनाये रखना चाहिए, गुण-सौन्दर्य को भी ठीक बनाये रखना चाहिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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