गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-8 : अध्याय 11
प्रवचन : 9
उनचास मरुद्गण होते हैं। जितने मरुत हैं-बहुत भेद होता है, उनका आवह प्रवह, आदि; किसी की गति नीचे को होती है, किसी की गति ऊपर को होती है। किसी की गति टेढ़ी होती है, कोई बादल लाने वाला होता है, कोई गरमी लाने वाला होता है, कोई गन्ध लाने वाला होता है, वायु के अनेक भेद होते हैं। भगवान ने बताया कि ये जितने मरुद्गण होते हैं उनमें मैं मरीचि हूँ। मरीचि नामक कोई मरुत नहीं है। इसका अर्थ-वायु में जो रश्मियाँ हैं, किरणें हैं वह मैं हूँ। सम्पूर्ण वायु के भेदों में जो एक ज्योति है, जो एक चमक है, जो एक गति देने वाली संज्ञा है, वह मैं हूँ। बहुतों में एक-ऐसे बता दिया। मरुद्गण बहुत हैं और उनमें मैं मरीचि, सबमें रहने वाला, मैं एक हूँ। ‘अक्षराणामकारोस्मि’।[1] अक्षर बहुत-से हैं। जो कागज पर लिखते हैं, उनका नाम अक्षर नहीं होता है। ये जो लिपि है-काली स्याही या नीली स्याही पोत देते हैं कागज पर, वह स्याही से पुती हुई जो शकल है, लिपि है, उसका नाम अक्षर नहीं है। टंकण है-टाईप कर देते हैं-उसका नाम भी अक्षर नहीं है। जो ताल के पत्ते पर उल्लेख कर देते हैं, वह अक्षर नहीं है। एक लिपि होती है, एक उल्लेख होता है, एक टंकण होता, इनका नाम अक्षर नहीं है। लिपि चाहे चाइना हो, चाहे लेंटिन हो, चाहे रशियन हो, चाहे नागरी हो, जो हम ‘क’ बोलते हैं वह एक होता है। और क ख ग में ‘अ’ होता है वह एक होता है। ‘अक्षराणाकमकरोस्मि’-जो कण्ठ, तालु आदि के आघात से उच्चारित होता है वह अक्षर है-चीन में भी क क ही है और लेंटिन में भी क क ही है और एशिया में भी क क ही हैं। हमारे संस्कृत उच्चारण में भी क क ही है। जो लिपियाँ अनेक होने पर भी और देश अनेक होने पर भी एक रूप जिसका उच्चारण होता है, उसका नाम होता है ‘अक्षर’। ‘न क्षरति’ उसका नाश कभी नहीं होता। बिना ‘अ’ के कोई अक्षर बोला नहीं जा सकता। जिसके बिना किसी अक्षर का उच्चारण नहीं हो सकता वह क्या है? वह ‘अ’ है। परमात्मा कैसा है? जिसके बिना किसी की सत्ता सिद्ध नहीं होती। जिसके बिना किसी का ज्ञान सिद्ध नहीं होता। जिसके बिना कोई रूप-रंग नहीं है। उसको बोलते हैं अक्षर-अब आपका मन्त्र आया ‘अक्षराणाम् अकारोस्मि’ यह अलग हो गया। और ‘गिरामस्म्येकं अक्षरम्’।[2] एक अक्षर में, वाणी में मैं एक अक्षर हूँ; यहाँ एक अक्षर का अर्थ है-ओमकार-‘अक्षराणाम् अकारोस्मि’‘अ’है और वाणी में ओम कार है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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