गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-8 : अध्याय 11
प्रवचन : 8
वसिष्ठ गोत्र, गर्गगोत्र, शाण्डिल्य गोत्र-जैसे गोयल। गोयल माने गोभिल गोत्र ही है। ये बंसल बोलते हैं जिसे उसके वंश-प्रवर्तक वत्स ही हैं। यह इसकी रीति है। उन आचार्यों के संस्कार, परम्परा से रजवीर्य में छिपे रहकर कभी-कभी हजारों वर्ष के बाद, लाखों वर्ष के बाद प्रकट होते हैं। ये बात लोगों को तब पता चलती है जब बहुत गम्भीरता से सृष्टि के रहस्य पर विचार करते हैं-आपने सुना होगा-सैबेरिया में कुछ जौ के दाने मिले। जाँच की गयी तो 2000 वर्ष पहले के थे। और वहाँ ज्यों-के-त्यों पड़े थे क्योंकि ठंड ज्यादा होती है। जब वहाँ से उठाकर लाये गये, सामान्य भूमि में इधर लाये गये, तो उनमें अंकुर निकल आये। 2000 वर्ष बाद उन में जो बीज शक्ति छिपी थी, वह ठंड में प्रकट नहीं हो रही थी और अब प्रकट हो गयी। यह जो हम लोगों के गोत्र का नाम लेते हैं, वह शक्ति भी रहती है। मनुष्य का शरीर पंचभूत रूप उपादन से बनता है और नाना-नानी, माता-पिता, तक में गोत्र-प्रवर्तक ऋषि के उसमें संस्कार छिपे रहते हैं। इसी से सज्जन को भी दुर्जन होते देखा जा रहा है। और दुर्जन को भी सज्जन होते देखा जाता है। हमने देखा है जो पहले बहुत दुष्ट थे वे शिष्ट हो गये। निराश कभी नहीं होना चाहिए कि यह दुष्ट है। इसके अन्दर शिष्टता कभी नहीं आयेगी। आशा रखनी चाहिए कि यह दुष्ट है। इसके अन्दर शिष्टता कभी नहीं आयेगी। आशा रखनी चाहिए, विश्वास रखना चाहिए कि यह आगे चलकर ठीक हो जायेगा। आप किसी को भी हमेशा के लिए बुरा मत समझिये। उसके भीतर जो अच्छाई है, उस पर ध्यान दीजिये। उसके भीतर शक्ति है, विशेषता है। हम लोगों का जो शरीर बनता है, वह पंचभूत से बनता है, जीव के पूर्व कर्म से बनता है। जीव के पूर्व पुरुषों से आता है और गर्भ के खानपान से बनता है और संग से बनता है। यह चरकसंहिता में सात प्रकार का कहा गया है। भगवान का जो शरीर है, उसमें ये सातों नहीं होते। न उनमें माता-पिता का प्रभाव है, न संग का प्रभाव है, न नाना-नानी का, न दादा-दादी का, न गोत्र प्रवर्तक ऋषि का; उनका शरीर-कर्म और वासना से बना हुआ नहीं है। वह जो सच्चिदानन्दघन परमात्मा है, वह केवल करुणापरवश होकर के ही एक व्यक्ति के रूप में प्रकट हुआ है। अब आप जब विभूतियों का विश्लेषण करें तब उसमें देख लें कि कौन-सी विभूति, परमात्मा का आविर्भाव है। जैसे यहीं ‘आदित्यानामहं विष्णुः’ ये उपास्य हैं। माने विष्णु की उपासना की जानी चाहिए, क्योंकि उनका शरीर जड़ वस्तुओं से बना हुआ नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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