गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-8 : अध्याय 11
प्रवचन : 8
इसलिए भगवान विष्णु से वामन हो गये–बौने। माँगने वाला कभी बड़ा तो हो ही नहीं सकता। पर जब बलि के यज्ञ में जाकर उन्होंने माँगा तो वहाँ स्पष्ट लगता है कि इन्द्र और देवताओं का उन्होंने पक्षपात किया। छोटे होकर माँगने गये और लेते–लेते विराट बन गये। और बलि का सर्वस्व ले लिया। भगवान बड़े अन्यायी हैं भाईǃ नहीं, भगवान की रीति यही है कि छोटे–से बनकर हृदय में आते हैं–जैसे कामना जो है वह छोटी–सी बनकर अपने हृदय में आती है और जब संग मिलता है तब तरंग के रूप में आती है और समुद्र बन जाती है। भगवान भी ऐसे ही हृदय में पहले छोटे–से बनकर आते हैं। दो मिनट के लिए भगवान का नाम लेना शुरू करो, दो मिनट के लिए भगवान का ध्यान शुरू करो, जब उसमें रस आ जायेगा तब वह ध्यान घण्टों के लिए हो जायेगा । भगवान जीवन में नन्हें-से बनकर प्रवेश करते हैं और फिर विशाल रूप धारण कर लेते हैं। बलि के सामने नन्हें-से बनकर आये और थोड़ी-सी चीज माँगी। दो मिनट माँगा-तीन मिनट समझ लो। केवल तीन मिनट माँगा। केवल तीन पग धरती माँगी। बाबा-हम थोड़े में ही सन्तुष्ट हैं। देखो, भगवान की चालाकी है यह! पहले से ज्यादा माँगेंगे तो देंगे नहीं। शुक्राचार्य उसी समय काने हो गये थे। जब उन्होंने दान देने में रुकावट डाली तो काने हो गये। पक्षपात ही देखो-तीन पग माँगा दूसरे शरीर से! संकल्प ले रहे थे दूसरे शरीर में और बन गये बिलकुल विराट। एक पग में बलिका लोक नाप लिया-दूसरे पग में परलोक नाप लिया, परन्तु इतने-से उनके तीन पग पूरे नहीं हुए। हमें बताना यह है कि बलि पर भी भगवान की कितनी करुणा है। इन्द्र को मिला एक पग-नहीं, उपेन्द्र को मिला दो पग। और बलि को डाँटा-तुमने तीन पग देने की प्रतिज्ञा की थी-तुम दे नहीं सके, इसलिए तुम्हें नरकम जाना पड़ेगा। क्योंकि जो अपनी प्रतिज्ञा का पालन नहीं करता है, उसको नरक में जाना पड़ता है। नहीं महाराज, हमारी प्रतिज्ञा झूठी नहीं है। आप तीसरा भी नाप लो। अब तुम्हारे पास है क्या? न लोक है, न परलोक है। हम नापें क्या? झट बलि ने अपना सिर झुकाया। पदं तृतीयं कुरु शीष्र्णि मे निजम्।[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भाग. 8.22.2
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