गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-8 : अध्याय 11
प्रवचन : 6
यह अपने मन से दुनिया बनाते हैं, यदि आप सोचोगे तो मालूम पड़ेगा। हम आप यदि इस पर विचार करेंगे कि क्या-क्या आपने बनाया है, और क्या-क्या आप बिगाड़ कर सो जाते हैं-तो केवल आत्मसत्ता के सिवाय दूसरी कोई वस्तु नहीं मिलेगी। एक कुम्हार किसी राजा के महल के पास रहता था। दिन भर बिचारा घड़ा बनाता-माटी लाता, उसको तपाता, बाजार में बेचता, रुपया दो रुपया मजदूरी का मिल जाता, काम चलता था। पर रात को जब सोता तब राजा हो जाता। महल का मालिक, रानी, सेनापति, धन, सम्पदा-रोज-रोज! अब वह जब घड़ा बनावे, माटी खोदे, बाजार में बेचने जावे तो रोता रहे-क्यों रोता रहे-अरे कब नींद आयेगी? हम सो जायेंगे और फिर राजा हो जायेंगे। वह सपने का राजा उसके लिए इतना प्यारा हो गया, इतना अभ्यस्त हो गया। इतना वह ठीक समझने लगा, उस राज्य को कि उसको जाग्रत-अवस्था की कोई वस्तु अच्छी ही न लगे। हमने यह जो अपना सपना सँजोया है, वह इतना पक्का हो गया है कि अपनी असलियत अच्छी नहीं लगती, अपनी बनावट अच्छी नहीं लगती। भगवान को जानने का, सृष्टि का आदि, मध्य, अन्त जानने का फायदा क्या है? सच यह है कि हम जो अपने ही बनाये हुए कटघरे में हैं, अपने ही बनाये जेलखाने में हैं, अपने ही बनाये हुए बन्धन में बॅंध गये हैं। इससे मुक्त हो जायेंगे। जीवन्मुक्त हो जायेंगे। जीवन्मुक्त हो जायेंगे और फिर निर्द्वन्द्व होकर जो काम करेंगे निश्चिन्त होकर करेंगे। उसमें न कोई आगे की चिन्ता है, न पीछे की चिन्ता है। इस समय को हम अपने-आप से भर रहे हैं। अपने-आप से हम सारे समय को भरते चल रहे हैं। हम समय के पराधीन नहीं है। समय को हम जान-बूझकर भर रहे हैं। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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