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‘हे पृथ्वी माता, तुम तीनों लोकों को धारण करने वाली हो और तुम्हें [[विष्णु|भगवान विष्णु]] धारण करते हैं। तुम हम को अपनी गोद मे ले लो। हमारा यह आसन पवित्र हो जाये। इस प्रार्थना से आपको बड़ी भारी शक्ति मिलेगी। लोग हाथ में [[जल]] लेकर चारों ओर छिड़कते हैं और संकल्प करते हैं।’ | ‘हे पृथ्वी माता, तुम तीनों लोकों को धारण करने वाली हो और तुम्हें [[विष्णु|भगवान विष्णु]] धारण करते हैं। तुम हम को अपनी गोद मे ले लो। हमारा यह आसन पवित्र हो जाये। इस प्रार्थना से आपको बड़ी भारी शक्ति मिलेगी। लोग हाथ में [[जल]] लेकर चारों ओर छिड़कते हैं और संकल्प करते हैं।’ | ||
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− | ;अपसर्पन्तु ते भूता | + | ;अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमिसंस्थिता। |
;ये भूता विघ्नकर्तास्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया।।</poem> | ;ये भूता विघ्नकर्तास्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया।।</poem> | ||
यहाँ यदि कोई प्राणि हों, चढ़ आये हों घुस आये हों तो आसन के नीचे उनकी हिंसा न हो जाये और जो विघ्न करने के लिए आने वाले हों, उनको नाश हो जाये। उसका आशय यही है कि भजन निर्विघ्न होकर करना चाहिए। | यहाँ यदि कोई प्राणि हों, चढ़ आये हों घुस आये हों तो आसन के नीचे उनकी हिंसा न हो जाये और जो विघ्न करने के लिए आने वाले हों, उनको नाश हो जाये। उसका आशय यही है कि भजन निर्विघ्न होकर करना चाहिए। |
18:01, 3 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 6
जब हम शरीर को शान्त करते हैं- एकदम स्थिर तो उसका उपाय क्या है? उसके लिए एक आधिदैविक युक्ति सुनाता हूँ। जहाँ बैठकर भजन करना हो, वहाँ पहले पृथ्वी से प्रार्थना कर लीजिए-
‘हे पृथ्वी माता, तुम तीनों लोकों को धारण करने वाली हो और तुम्हें भगवान विष्णु धारण करते हैं। तुम हम को अपनी गोद मे ले लो। हमारा यह आसन पवित्र हो जाये। इस प्रार्थना से आपको बड़ी भारी शक्ति मिलेगी। लोग हाथ में जल लेकर चारों ओर छिड़कते हैं और संकल्प करते हैं।’
यहाँ यदि कोई प्राणि हों, चढ़ आये हों घुस आये हों तो आसन के नीचे उनकी हिंसा न हो जाये और जो विघ्न करने के लिए आने वाले हों, उनको नाश हो जाये। उसका आशय यही है कि भजन निर्विघ्न होकर करना चाहिए। अब एक दूसरी आधिदैविक बात सुनाता हूँ। जो लोग अपने मन से केवल किताबें में पढ़कर साधना करने बैठ जाते हैं, उन्हें यह सब बातें मालूम नहीं हैं। ध्यान के लिए स्थिरता से बैठना आवश्यक है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
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