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अब उससे भी अन्तरंग देखो। फैले हुए देश में मन को समेटना '''धारणा''' है। काल में फैले हुए मन को समेटना '''ध्यान''' है और वस्तुओं में फैले हुए मन को समेटना '''समाधि''' है। इन सबका क्रम होता है। सबके सम्बन्ध में समझदारी होती है। आज्ञाकारी लोग दूसरे होते हैं, समझदार लोग दूसरे होते हैं। उनका भी स्तर होता है। जो हर बात को समझ लेना चाहते हैं, उनकी स्थिति अलग होती है। आप क्या कोई व्यापार करते है तो बिना समझे–बूझे कर लेते हैं? फिर योगाभ्यास बिना समझे–बूझे कैसे कर लेंगे? बुद्धि का तिरस्कार करके तो कुछ भी नहीं हो सकता- | अब उससे भी अन्तरंग देखो। फैले हुए देश में मन को समेटना '''धारणा''' है। काल में फैले हुए मन को समेटना '''ध्यान''' है और वस्तुओं में फैले हुए मन को समेटना '''समाधि''' है। इन सबका क्रम होता है। सबके सम्बन्ध में समझदारी होती है। आज्ञाकारी लोग दूसरे होते हैं, समझदार लोग दूसरे होते हैं। उनका भी स्तर होता है। जो हर बात को समझ लेना चाहते हैं, उनकी स्थिति अलग होती है। आप क्या कोई व्यापार करते है तो बिना समझे–बूझे कर लेते हैं? फिर योगाभ्यास बिना समझे–बूझे कैसे कर लेंगे? बुद्धि का तिरस्कार करके तो कुछ भी नहीं हो सकता- | ||
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17:55, 3 फ़रवरी 2018 का अवतरण
गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 6
किसी का माल या किसी का हक़ हड़पना अस्तेय है और आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना अपरिग्रह है। अधिक संग्रह मन को विक्षिप्त कर देता है। उपने हक़ की वस्तु भी आवश्यकता से अधिक संग्रहीत करना परिग्रह और न करना अपरिग्रह है। योग की बात आप जानते ही हैं। ये पाँच यम समाज के साथ बर्ताव करने के लिए हैं और अपने लिए पाँच नियम हैं। पवित्रता के नियम, तपस्या के नियम, स्वाध्याय के नियम, संतोष के नियम और ईश्वर-प्रणिधान अथवा ईश्वर-चिन्तन के नियम- ये पाँचों नियम मनुष्य के जीवन में होने चाहिए। यम और नियम योग अनिवार्य अंग है। अब और भीतर चलिए। शरीर, प्राण और इन्द्रिय- इन तीनों की शुद्धि के लिए तीन साधन हैं शरीर के लिए आसन, प्राण के लिए प्राणायाम और इन्द्रियों के लिए प्रत्याहार। यम बहिरंग है, समाज में है। नियम अपने जीवन में है। आसन अपने शरीर में है। प्राणायाम प्राण में और प्रत्याहार इन्द्रियों में है। अब उससे भी अन्तरंग देखो। फैले हुए देश में मन को समेटना धारणा है। काल में फैले हुए मन को समेटना ध्यान है और वस्तुओं में फैले हुए मन को समेटना समाधि है। इन सबका क्रम होता है। सबके सम्बन्ध में समझदारी होती है। आज्ञाकारी लोग दूसरे होते हैं, समझदार लोग दूसरे होते हैं। उनका भी स्तर होता है। जो हर बात को समझ लेना चाहते हैं, उनकी स्थिति अलग होती है। आप क्या कोई व्यापार करते है तो बिना समझे–बूझे कर लेते हैं? फिर योगाभ्यास बिना समझे–बूझे कैसे कर लेंगे? बुद्धि का तिरस्कार करके तो कुछ भी नहीं हो सकता-
अब आपको आसन प्राणायाम और प्रत्याहार की सुनाता हूँ। हमारे योगदर्शन में तीन-तीन का विभाग है। जैसे-
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 6.13
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