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− | आसन के लिए धरती सम हो, ऊँची-नीची न हो शरीर भी सम तथा पवित्र हो। यदि आपको अपने भीतर पवित्रता की संवित् न हो तो आपका आसन लगाना, बैठना बेकार हो जायेगा। आप यह ध्यान कर सकते हैं कि आपके शरीर पर सूर्य की किरणों से अमृत गिर रहा है और वह आपको बाहर-भीतर से पवित्र कर रहा है। आप अपने सिर में सहस्रदल कमल का ध्यान करके उसके ऊपर हमारे गुरु बैठे हैं और उनके चरणारविन्द से हमारा सिर पवित्र हो रहा है- ऐसा ध्यान कीजिए। आप यह भी ध्यान करें कि आपके अन्दर जो शक्ति है- मूलाधार से लेकर सहस्रार-पर्यन्त-उसमें-से एक शक्ति की धारा निकल रही है, और बौछार निकल रही है और आपको पवित्र कर रही है- जैसे भी हो अपने आपको पवित्र कर लीजिए। | + | आसन के लिए धरती सम हो, ऊँची-नीची न हो शरीर भी सम तथा पवित्र हो। यदि आपको अपने भीतर पवित्रता की संवित् न हो तो आपका आसन लगाना, बैठना बेकार हो जायेगा। आप यह ध्यान कर सकते हैं कि आपके शरीर पर [[सूर्य]] की किरणों से [[अमृत]] गिर रहा है और वह आपको बाहर-भीतर से पवित्र कर रहा है। आप अपने सिर में सहस्रदल कमल का ध्यान करके उसके ऊपर हमारे [[गुरु]] बैठे हैं और उनके चरणारविन्द से हमारा सिर पवित्र हो रहा है- ऐसा ध्यान कीजिए। आप यह भी ध्यान करें कि आपके अन्दर जो शक्ति है- मूलाधार से लेकर सहस्रार-पर्यन्त-उसमें-से एक शक्ति की धारा निकल रही है, और बौछार निकल रही है और आपको पवित्र कर रही है- जैसे भी हो अपने आपको पवित्र कर लीजिए। |
− | जिस प्रकार एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के पास शरीर को | + | जिस प्रकार एक पतिव्रता स्त्री अपने [[पति]] के पास शरीर को स्वच्छ कर, सुन्दर वस्त्र धारण करके जाती है, वैसे ही आप भी परमात्मा के पास चलें। चाहे जिस अवस्था में रहने और पास जाने की पद्धति [[ईश्वर]] के सामने नहीं चल सकती। शहर में जाते हैं तब तो लोगों को दिखाने के लिए सोलहों श्रृंगार करके जाते हैं, और घर में रहते हैं तो मैला-कुचैला पहनते हैं। नहीं अपने घर में भी, पवित्रता और सुन्दरतापूर्वक रहना चाहिए। यदि आपका पति आपकी सुन्दरता नहीं देखेगा तो क्या गाँव के लोग देखेंगे? आपको किसे आकृष्ट करना है? किसकी आँख अपनी ओर खींचनी हैं? तो आप पवित्र हो जाइये। आपके हृदय की पवित्रता ही आपको परमात्मा के साथ मिला देगी। |
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17:26, 3 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 5
आसन के लिए धरती सम हो, ऊँची-नीची न हो शरीर भी सम तथा पवित्र हो। यदि आपको अपने भीतर पवित्रता की संवित् न हो तो आपका आसन लगाना, बैठना बेकार हो जायेगा। आप यह ध्यान कर सकते हैं कि आपके शरीर पर सूर्य की किरणों से अमृत गिर रहा है और वह आपको बाहर-भीतर से पवित्र कर रहा है। आप अपने सिर में सहस्रदल कमल का ध्यान करके उसके ऊपर हमारे गुरु बैठे हैं और उनके चरणारविन्द से हमारा सिर पवित्र हो रहा है- ऐसा ध्यान कीजिए। आप यह भी ध्यान करें कि आपके अन्दर जो शक्ति है- मूलाधार से लेकर सहस्रार-पर्यन्त-उसमें-से एक शक्ति की धारा निकल रही है, और बौछार निकल रही है और आपको पवित्र कर रही है- जैसे भी हो अपने आपको पवित्र कर लीजिए। जिस प्रकार एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के पास शरीर को स्वच्छ कर, सुन्दर वस्त्र धारण करके जाती है, वैसे ही आप भी परमात्मा के पास चलें। चाहे जिस अवस्था में रहने और पास जाने की पद्धति ईश्वर के सामने नहीं चल सकती। शहर में जाते हैं तब तो लोगों को दिखाने के लिए सोलहों श्रृंगार करके जाते हैं, और घर में रहते हैं तो मैला-कुचैला पहनते हैं। नहीं अपने घर में भी, पवित्रता और सुन्दरतापूर्वक रहना चाहिए। यदि आपका पति आपकी सुन्दरता नहीं देखेगा तो क्या गाँव के लोग देखेंगे? आपको किसे आकृष्ट करना है? किसकी आँख अपनी ओर खींचनी हैं? तो आप पवित्र हो जाइये। आपके हृदय की पवित्रता ही आपको परमात्मा के साथ मिला देगी। ॐ शांति: ॐ शांति: ॐशांति: |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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