गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 3
जीवन ज्ञान-कर्मात्मक होने के कारण श्रम और विश्राम उसके दो रूप हैं। जो रात में ठीक-ठीक नींद नहीं लेगा वह दिन में जाग कर ठीक-ठीक काम नहीं कर सकेगा और जो दिन में ठीक-ठीक काम नहीं करेगा, उसको रात में नींद नहीं आयेगी। जैसे दिन के बाद और रात के बाद दिन है, वैसे ही श्रम के बाद विश्राम और विश्राम के बाद श्रम है। इसी तरह जीवन में संग्रह और त्याग भी है यदि आप केवल संग्रह करोगे और त्याग नहीं करोगे तो वह संग्रह इतना फैलेगा कि आपको फाड़ देगा और केवल त्याग करोगे तथा संग्रह नहीं करोगे तो त्याग करने के लिए आपके पास कुछ रहेगा ही नहीं। इसलिए संग्रह और त्याग, कर्म और ज्ञान, विश्राम और श्रम इन सबके द्वारा जीवन चलता है यही लोक व्यवहार है। हम उस ज्ञान की चर्चा नहीं कर रहेा जेा पारमार्थिक है, और जिसमें ज्ञाता एवं ज्ञेय का, ईश्वर एवं जगत् का भेद ही नहीं है। यहाँ तो करने-कराने वाला व्यावहारिक ज्ञान है। यदि आप ‘आरुरुक्षु’ हैं - चढ़ना चाहते हैं तो कर्म की साधना कीजिए। फिर जब आपकी कर्म-साधना पूरी हो जाये तब आप शान्ति का आश्रय लीजिए। आप अपने जीवन में रिटायर्ड होने- अवकाश प्राप्त करने का संकल्प कभी करते हैं या नहीं- यह एक प्रश्न है। एक जवान मेरे पास आया और बोला कि महाराज, मेरी उम्र चालीस वर्ष की हो गयी है। पिता जी न तो मुझे गद्दी पर बैठने देते हैं। और न मुझे चाबी देते हैं। यदि पिता जी बीस वर्ष और रह गये तो मेरा क्या होगा? तब तक मैं हो जाऊँगा साठ वर्ष का और पिता जी हो जायेंगे अस्सी बरस के। मुझे तो काम करने का कोई अवसर ही नहीं मिलेगा। असल में जैसे-जैसे काल बदला है, वैसे कर्म की पद्धति भी बदलती है। नये-नये कर्म आते हैं। और उनको करने की नयी-नयी शौलियाँ आती हैं। हमारे पास आने वाले जवान डॉक्टर पुराने डॉक्टरों के बारे में अपनी राय जाहिर करते हुए कहते हैं कि जो लेटेस्ट साइंस है, वह हम जानते हैं। पुराने डॉक्टर तो बूढ़े हो गये हैं, वे नहीं जानते। इसलिए आपसे निवेदन है कि आप नयी पीढ़ी का भी आदर कीजिए। आरुरुक्षु के लिए, उन्नति की ओर अग्रसर होने वाले के लिए, बचपन से जवानी की ओर बढ़ने वाले के लिए, जवानी से प्रौढ़ता की ओर जाने वाले के लिए कर्म की प्रधानता होनी चाहिए। फिर जब योगी की सिद्धि प्राप्त हो जाय तो जीवन में शान्ति भी होनी चाहिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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