गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-9 : अध्याय 12
प्रवचन : 4
महान ज्ञान उसका है, जिसके ज्ञान में पापी और पुण्यात्मा दोनों होते हैं। पापियों को उन्नति भी-उनकी पवित्रता भी जिसके ध्यान में रहती है, वह महापुरुष होता है। वह श्रीकृष्ण ‘अप चेत् सुदुराचारो भजते माभनन्यभाक्’[1] दुराचार का भी कल्याण करने के लिए श्रीकृष्ण तैयार हैं। अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः। जो सबका कल्याण चाहता है, वह महात्मा है। वह ऋषि होता है। वेदमन्त्रों के जो द्रष्टा हैं उनको ऋषि कहते हैं। ‘ऋषयो मन्त्र-द्रष्टारः’। ये जो वेद के मन्त्र हैं किसी जाति के लिए नहीं है। इनमें साम्प्रदायिकता नहीं है। इनमें राष्ट्रीयता नहीं है। सम्पूर्ण विश्व मानव से लेकर कीट-पतंगपर्यन्त सबके कल्याण के मन्त्र आते हैं। आप सुनेंगे-मण्डूक भी मन्त्र के ऋषि हैं। मण्डूक-सूक्त है वेदों में। माण्डूक्य उपनिषद् है। तित्तिरीय उपनिषद् है। कितना ज्ञान है तीतर में और कितना ज्ञान है मण्डूक में, कितना ज्ञान है श्वेताश्वतर में। स्त्रियाँ जो हैं वे मन्त्र-दर्शन करने वाली हैं। वहाँ स्त्री-पुरुष का भेद नहीं। स्त्री-पुरुष का भेद लिंग-भेद है। और मनुष्य और पशु का जाति-भेद है और जो ईसाई, मुसलमान, हिन्दू का भेद है यह आचार्य मूलक सम्प्रदाय-भेद है। नदी के घेरे में, समुद्र के घेरे में होने से कोई वस्तु भिन्न हो जाती हो सो बात नहीं है। पूर्णता की दृष्टि ही महर्षि की दृष्टि है। जो महर्षि हैं, सिद्ध हैं, वे सब-के-सब पुष्कल-‘पुष्टा कलाः येषु ते’-जिसमें परिपुष्ट कला है, माने सकल के रूप में परमेश्वर की आराधना करते हैं-ये सब परमेश्वर का स्वरूप है। ‘स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिः पुष्कलाभिः।’ एक स्तोत्र शब्द है और एक स्तुति है। स्तुति शब्द भाव-प्रधान होता है और स्तोत्र शब्द वर्ण प्रधान होता है। ‘स्तुत्य अनेन इति स्तोत्रम्; स्तवनं स्तुतिः।’ जब हम अपने भाव से भगवान की स्तुति करते हैं तो उसका नाम स्तुति हो जाता है। और जब हम दूसरे के लिए हुए स्तोत्र का पाठ करते हैं तब उसका नाम स्तोत्र होता है। उसमें अपना भाव मिलाना पड़ता है। जिसने जिस भाव से स्तुति की है, उस भाव के साथ हम एक हो जाते हैं कि नहीं? यदि एक हो जायेंगे तो वह स्तोत्र हमारा हो जायेगा और नहीं तो वह स्तोत्र उसका रहेगा और हम अलग हो जायेंगे। धीरे-धीरे अभ्यास करते-करते हो भी जाता है। हम अपनी भावमय स्तुति से भगवान की स्तुति करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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