गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 6
समं कायशिराग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरम्। शरीर, सिर और गर्दन- इनल तीनों को सम होना चाहिए, शरीर स्थिर होगा, तभी प्राण स्थिर होंगे इन्द्रियाँ स्थिर होंगी और मन स्थिर होगा। यदि मन को ही चंचल रखेंगे तो प्राण भी स्थिर नहीं होगा, इन्द्रियाँ भी स्थिर नहीं होंगी और शरीर भी स्थिर नहीं होगा। इनके लिए एक आाधिदैविक उपाय सद्गुरु लोग अपने शिष्यों को बताते हैं। वह उपाय यह है कि आप थोड़ी देर के लिए यह ध्यान कीजिए। कि आपके शरीर के भीतर शेषनाग है। शेषनाग का रंग सफेद- श्वेतवर्ण होता है, तो भगवान शेषनाग आपके शरीर के भीतर हैं और फल फैलाकर बैठे हैं। उनकी गोद में भगवान विष्णु हैं, उनके सिर पर पृथ्वी है और वे बिलकुल स्थिर हैं। अब यदि शेष भगवान हिलेंगे तो विष्णु की योगनिद्रा टूटेगी और पृथ्वी में भूकम्प आवेगा। इस प्रकार शेष भगवान बिलकुल अचल होकर आपके शरीर में विद्यमान हैं। अब आपके मन में जितनी देर तक शेषनाग के इस रूप का ध्यान रहेगा, उतनी देर आपका शरीर स्थिर हो जायेगा और स्थिर रहेगा अभ्यास हो जायेगा तब आपका योगाभ्यास सिद्ध हो जायेगा। आप अभी करके देख लीजिए। जितनी देर आपका शरीरा सीधा और स्थिर रहेगा, उतना ही अभ्यास आपका बढ़ेगा। तो शरीर में स्थिरता आवश्यक है। वही बुद्धि को शुद्ध करने का साधन है। बुद्धि की शुद्धि आपके व्यापार के लिए भी लाभदायक है। आपकी बुद्धि शुद्ध रहेगी, स्थिर होगी तो आप जिस विषय में भी सोचना प्रारम्भ करेंगे, बिल्कुल ठीक-ठीक सोच सकेंगे। कभी-कभी तो आपकी बुद्धि में वैसी आने लगेंगी, जिनको आपने न सुना और सोचा। बुद्धि शुद्ध होने पर अत्यन्त प्राचीन काल के विचारों के ब्राडकास्ट भी सुनायी पड़ने लग सकते हैं। श्री राम ने, महर्षि वसिष्ठ ने, श्रीकृष्ण ने, जो कुछ कहा था, वह सब आकाश में भरा हुआ है। शुद्धि बुद्धि उन विचारों को पकड़ सकेगी। अमेरिका, चीन और रूस आदि में फैलाये जा रहे विचारों को जैसे आपका रेडियो ग्रहण करता है, वैसे ही आपकी शुद्ध बुद्धि यह ग्रहण कर सकती है कि अमुक विषय पर उनके क्या विचार हैं? अपने देश के पतंजलि, पाणिनी व्यास तथा शुकदेव आदि ने जो विचार प्रकट किये, वह भी शुद्ध बुद्धि ग्रहण करने लगेगी। चमत्कार प्रदर्शनी में नहीं, बुद्धि में है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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