कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) |
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ऐसे काम-भोजन का ग्रास उठा लें, चावल उठा लें, तिल उठा लें, सूक्ष्म-से-सूक्ष्म वस्तु उठा लें। इतने मोड़वाला इच्छायन्त्र अभी तक सृष्टि में बना नहीं है। कहते हैं-लोगों ने यान्त्रिक मानव बनाया है। पर इतने मोड़ और इतनी स्वच्छता, मनुष्य के सिवाय दूसरे किसी प्राणी में नहीं है। कर्म करने का अधिकार मनुष्य को है। प्रकृति से कहो, ईश्वर से कहो ये दोनों हाथ मिले हैं। | ऐसे काम-भोजन का ग्रास उठा लें, चावल उठा लें, तिल उठा लें, सूक्ष्म-से-सूक्ष्म वस्तु उठा लें। इतने मोड़वाला इच्छायन्त्र अभी तक सृष्टि में बना नहीं है। कहते हैं-लोगों ने यान्त्रिक मानव बनाया है। पर इतने मोड़ और इतनी स्वच्छता, मनुष्य के सिवाय दूसरे किसी प्राणी में नहीं है। कर्म करने का अधिकार मनुष्य को है। प्रकृति से कहो, ईश्वर से कहो ये दोनों हाथ मिले हैं। | ||
− | चाहें तो ये पत्नी का बोझ वहन करने के लिए भी हैं और पति का बोझ वहन करने के लिए भी हैं। और अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए हैं। संसार में जितने बाहु हैं माने कर्म करने की संसार में जितनी शक्तियाँ हैं वे सब | + | चाहें तो ये पत्नी का बोझ वहन करने के लिए भी हैं और पति का बोझ वहन करने के लिए भी हैं। और अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए हैं। संसार में जितने बाहु हैं माने कर्म करने की संसार में जितनी शक्तियाँ हैं वे सब परमात्मा की शक्तियाँ हैं। हम लोगों के जो हाथ हैं ये हमारे हाथ नहीं है, ये भगवान के हाथ हैं। जब अपने हाथ मानते हैं तब हम गड़बड़ कर बैठते हैं। और जब भगवान के हाथ मानते हैं तब इनसे कोई भी अपवित्र, कलुषित कर्म नहीं होगा। जितने हाथ हैं, संसार में जितनी वस्तुएँ हैं वे सब भगवान की बाहु हैं। अर्थात् जितना भी कर्म हो रहा है, उसमें भगवान की शक्ति ही काम कर रही है। |
‘अनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रमृ’। ‘ये चक्षुषि चन्द्रसूर्यौ’-वेद में वर्णन आता है कि ये [[चन्द्रमा]] और सूर्य विराट भगवान के नेत्र हैं, माने वे चन्द्रमा से भी देखते हैं और सूर्य से भी देखते हैं। आप देखिये तापन और प्रकाशन दोनों शक्तियाँ [[सूर्य]] में होती हैं। और आह्लादन और प्रकाशन ये दोनों शक्तियाँ चन्द्रमा में होती है। आह्लाद-आनन्द देना और प्रकाशित करना तथा प्रकाशित करना और ताप देना। कर्मयोग के ये दो उदाहरण प्रस्तुत कर दिये हैं भगवान ने अपने नेत्रों के द्वारा। ‘स्वस्ति पन्थामनुचरेम सूर्या चन्द्रमसाविव।<ref>ऋग्वेद 5.5.15</ref> | ‘अनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रमृ’। ‘ये चक्षुषि चन्द्रसूर्यौ’-वेद में वर्णन आता है कि ये [[चन्द्रमा]] और सूर्य विराट भगवान के नेत्र हैं, माने वे चन्द्रमा से भी देखते हैं और सूर्य से भी देखते हैं। आप देखिये तापन और प्रकाशन दोनों शक्तियाँ [[सूर्य]] में होती हैं। और आह्लादन और प्रकाशन ये दोनों शक्तियाँ चन्द्रमा में होती है। आह्लाद-आनन्द देना और प्रकाशित करना तथा प्रकाशित करना और ताप देना। कर्मयोग के ये दो उदाहरण प्रस्तुत कर दिये हैं भगवान ने अपने नेत्रों के द्वारा। ‘स्वस्ति पन्थामनुचरेम सूर्या चन्द्रमसाविव।<ref>ऋग्वेद 5.5.15</ref> |
01:03, 27 मार्च 2018 के समय का अवतरण
गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-9 : अध्याय 12
प्रवचन : 4
ऐसे काम-भोजन का ग्रास उठा लें, चावल उठा लें, तिल उठा लें, सूक्ष्म-से-सूक्ष्म वस्तु उठा लें। इतने मोड़वाला इच्छायन्त्र अभी तक सृष्टि में बना नहीं है। कहते हैं-लोगों ने यान्त्रिक मानव बनाया है। पर इतने मोड़ और इतनी स्वच्छता, मनुष्य के सिवाय दूसरे किसी प्राणी में नहीं है। कर्म करने का अधिकार मनुष्य को है। प्रकृति से कहो, ईश्वर से कहो ये दोनों हाथ मिले हैं। चाहें तो ये पत्नी का बोझ वहन करने के लिए भी हैं और पति का बोझ वहन करने के लिए भी हैं। और अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए हैं। संसार में जितने बाहु हैं माने कर्म करने की संसार में जितनी शक्तियाँ हैं वे सब परमात्मा की शक्तियाँ हैं। हम लोगों के जो हाथ हैं ये हमारे हाथ नहीं है, ये भगवान के हाथ हैं। जब अपने हाथ मानते हैं तब हम गड़बड़ कर बैठते हैं। और जब भगवान के हाथ मानते हैं तब इनसे कोई भी अपवित्र, कलुषित कर्म नहीं होगा। जितने हाथ हैं, संसार में जितनी वस्तुएँ हैं वे सब भगवान की बाहु हैं। अर्थात् जितना भी कर्म हो रहा है, उसमें भगवान की शक्ति ही काम कर रही है। ‘अनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रमृ’। ‘ये चक्षुषि चन्द्रसूर्यौ’-वेद में वर्णन आता है कि ये चन्द्रमा और सूर्य विराट भगवान के नेत्र हैं, माने वे चन्द्रमा से भी देखते हैं और सूर्य से भी देखते हैं। आप देखिये तापन और प्रकाशन दोनों शक्तियाँ सूर्य में होती हैं। और आह्लादन और प्रकाशन ये दोनों शक्तियाँ चन्द्रमा में होती है। आह्लाद-आनन्द देना और प्रकाशित करना तथा प्रकाशित करना और ताप देना। कर्मयोग के ये दो उदाहरण प्रस्तुत कर दिये हैं भगवान ने अपने नेत्रों के द्वारा। ‘स्वस्ति पन्थामनुचरेम सूर्या चन्द्रमसाविव।[1] जैसे सूर्य और चन्द्रमा प्रतिक्षण चलते ही रहते हैं, उनकी गति में रुकावट नहीं है, वे कहीं आसक्त होकर रुक नहीं जाते हैं और कभी किसी से द्वेष करके अपना ताप, प्रकाश और आह्लाद देने से रुकते नहीं। कर्मयोगी के लिए कोई आदर्श है तो सूर्य और चन्द्रमा हैं। चलते रहो, प्रकाश बरसाते रहो, आनन्द बरसाते रहो, शीतलता बरसाते रहो। ताप और शीतलता, प्रकाश और आनन्द-ये भगवान की आँखों से बरसते हैं। और निरन्तर बरसते रहते हैं। कभी इनकी गति में अवरोध नहीं होता है। यही कर्मयोगी का काम है। श्रीकृष्ण ने अपना पहला चेला सूर्य को ही बनाया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऋग्वेद 5.5.15
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