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01:17, 1 जनवरी 2018 का अवतरण
गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 3
पिछली बातें भूत की तरह ही दिखायी पड़ती हैं। कोई कहता है कि तीस-पैंतीस वर्ष पहले हमारे एक सम्बन्धी की मृत्यु हो गयी थी। परन्तु अब भी उनकी याद करके हम को रात में नींद नहीं आती। ऐसे लोगों को यही उत्तर दिया जाता है। कि अपको भूत लगा है। विवेक से काम लीजिए और भूत के शोक को मन से निकाल दीजिए। भूत के शोक की तरह भविष्य का भय होता है। एक वैज्ञानिक ने बहुत परिश्रम करके यह सिद्ध किया था। कि पाँच करोड़ वर्ष बाद, जहाँ हिमालय है, वहाँ समुद्र लहराने लगेगा। यह क्या है, यह भविष्य का भय ही तो है। अभी से हम यह उपाय करें कि समुद्र हिमालय को न डुबो दे। ऐसा इसलिए हुआ कि उस वैज्ञानिक की बुद्धि के पाँव बहुत आगे की ओर फिसल गये। तो, जिसका पाँव बहुत आगे फिसल जाता है या बहुत पीछे फिसल जाता है वह गिरता है। आप कर्म करते समय सावधानी बरतें। पीछे की बातों के संकल्प और आगे की बातों के संकल्प से बचें। एक बात और है। चलते समय जहाँ हैं, वही आपके पाँव गड़ जाये तो यह हो जायेगा वर्तमान में मोह। भूत का शोक होता है। भविष्य का भय होता है और वर्तमान का मोह होता है यहाँ संकल्प पद से तीनों को ग्रहण करना चाहिए। यही बढ़िया है। आगे जो आयेगा, वह बढ़िया नहीं होगा। यह सोचना ठीक नहीं। देखो इस बढ़िया को। यह पाँव के नीये से सरक रहा है। क्या इसे सिर पर लादकर ले चलोगे? इस तरह जिन्दगी चलती। यदि आपको योगी होना है, बुद्धि-योगी होना है तो भूत-भविष्य में अथवा वर्तमान में सम्यक्त्व की कल्पना करके आबद्ध मन हो जाइये- नह्यसंन्यस्तमंकल्पो योगी भवति कश्चन। जिसने संकल्प का संन्यास नहीं किया वह योगी नहीं हो सकता। योगी तभी संन्यासी है, जब उसने अपने संकल्प को संन्यास कर दिया है। अब बताते हैं कि आपके जीवन में केवल कर्म ही नहीं चाहिए, विश्राम भी चाहिए। और केवल विश्राम ही विश्राम नहीं चाहिए, कर्म भी चाहिए। आपको सुनाया था, यह आत्मा व्यवहार में दो रूप से प्रकट हो रहा है। ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा संसार का ज्ञान होता है। कर्मेन्द्रियों के द्वारा ज्ञात विषय की प्राप्ति के साधन होते हैं। जैसे आँख से कश्मीर देखने की इच्छा होने पर आपको पाँव से चलना पड़ेगा। पाँव से चलना कर्म हुआ और आँख से देखना ज्ञान हुआ। इस प्रकार मनुष्य का जीवन कर्मात्मक है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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