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01:09, 1 जनवरी 2018 का अवतरण
गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 6
अतः मनुष्य को बुद्धिकी, अन्तःकरण की और मन की स्वस्थता के लिए अवश्य प्रयत्नशील होना चाहिए। मनुस्मृति में, याज्ञवल्क्यस्मृति में, भागवत में, महाभारत में यह बात आती है कि मनुष्य प्रातःकाल उठकार आत्मचिन्तन करे। मनुस्मृति का श्लोक देखिए-
मनुष्य को प्रातःकाल अपनी काया के क्लेश का चिन्तन कर लेना चाहिए। यह देखना चाहिए। कि क्या खाने से तबीयत बिगड़ती है, क्या न खाने से अच्छी रहती है, कौन-सा काम हमारे शरीर के लिए अनुकूल है, कौन-सा प्रतिकूल है, कैसी बात मुँह से निकलने पर मन में ग्लानि होती है, इत्यादि। मनुष्य को अपने चरित्र के सम्बन्ध में, दुःख-दारिद्र्य के सम्बन्ध में अवश्य ही विचार करना चाहिए। प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर ईश्वर से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि प्रभो, हमं याद रहे कि हमारा आचरण और हमारे मन की वासनाओं को देख रहे हैं। आज दिन भर के लिए हमको वरदान दे दीजिए। कि हम भीतर-बाहर से ठीक रहे। केवल एक दिन के लिए ही नही, यह वरदान प्रतिदिन के लिए माँगते रहो। आपको पुलिस के सामने, अफसर के सामने, सरकार के सामने झुकने में तो मजा आता हो, किन्तु सर्वशक्तिसम्पन्न ईश्वर के सामने प्रणत होने में क्यों हेठी मालूम पड़ती है? ऐसे लोग भी होते है, जो गुण्डों की खुशामद तो करते हैं, किन्तु ईश्वर से कहते हैं कि हम तुम से कुछ माँगते ही नहीं। वे जानते हैं कि ईश्वर बेचारा कुछ नुकसान तो करेगा नहीं, इसलिए कह देते हैं कि हम तुमसे कुछ माँगते ही नही। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मनुस्मृति 4.92
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