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− | मैं कहता था कि ‘मुझसे साधन नहीं होगा, आसन नहीं, प्राणायाम नहीं होगा। मेरा मन एकाग्र नहीं होगा।’ इसपर | + | हमको बचपन में हमारे गुरु जी ने एक [[मन्त्र]] बताया- ‘क्लैब्यं मा स्म गमः।’ |
+ | मैं कहता था कि ‘मुझसे साधन नहीं होगा, आसन नहीं, प्राणायाम नहीं होगा। मेरा मन एकाग्र नहीं होगा।’ इसपर गुरु जी बोलते थे-‘क्लैब्यं मा स्म गमः। अरे, नपुंसक मत बन। यह तो नामर्द का, कायर का काम है। तुम तो यह सोचो कि जो भी आपत्ति-विपत्ति या परिस्थिति हमारे सामने आयेगी, उसका हम डटकर सामना करेंगे, मुकाबला करेंगे, भागने से क्या होता है? | ||
तो भाई, इस बात को आप ध्यान में रखिये। पशुओं के मन में काम, क्रोध का वेग आता है तो वे उसको तुरन्त चरितार्थ कर लेते हैं। उन्होंने कहीं हरी-हरी घास देखी और मन में आया तो मुँह मार दिया, लेकिन पशुओं में भी जो अच्छे कुत्ते होते हैं, उनके सामने भोजन रखा रहने पर भी तब तक नहीं खाते, जब तक मालिक उनको खाने के लिए न कहे। अच्छे कुत्ते का यही लक्षण है कि आपके घर में खाने-पीने की बढ़िया से बढ़िया चीजें रखी हों लेकिन वह अपनी मर्जी से उसमें मुँह न लगावे। जर्मनी से एक व्यक्ति आया था। उसके साथ उसका अल्सेशियन कुत्ता था। वह उसे जूता सुंघा देता और कह देता कि ‘बैठो’। फिर जब तक वह लौटकर नहीं आता, उसका कुत्ता वहीं बैठा रहता। | तो भाई, इस बात को आप ध्यान में रखिये। पशुओं के मन में काम, क्रोध का वेग आता है तो वे उसको तुरन्त चरितार्थ कर लेते हैं। उन्होंने कहीं हरी-हरी घास देखी और मन में आया तो मुँह मार दिया, लेकिन पशुओं में भी जो अच्छे कुत्ते होते हैं, उनके सामने भोजन रखा रहने पर भी तब तक नहीं खाते, जब तक मालिक उनको खाने के लिए न कहे। अच्छे कुत्ते का यही लक्षण है कि आपके घर में खाने-पीने की बढ़िया से बढ़िया चीजें रखी हों लेकिन वह अपनी मर्जी से उसमें मुँह न लगावे। जर्मनी से एक व्यक्ति आया था। उसके साथ उसका अल्सेशियन कुत्ता था। वह उसे जूता सुंघा देता और कह देता कि ‘बैठो’। फिर जब तक वह लौटकर नहीं आता, उसका कुत्ता वहीं बैठा रहता। | ||
− | वह बिना दिये कुछ भी खाता नहीं था। कितनी वफादारी थी उस कुत्ते में। परन्तु मनुष्य अपने मन और इन्द्रियों को रोक नहीं सकता। काम का वेग आता है कि भोग लें, क्रोध का वेग आता है कि अमुक को सता | + | वह बिना दिये कुछ भी खाता नहीं था। कितनी वफादारी थी उस कुत्ते में। परन्तु मनुष्य अपने मन और इन्द्रियों को रोक नहीं सकता। काम का वेग आता है कि भोग लें, क्रोध का वेग आता है कि अमुक को सता लें, दुख दे लें‚ वाणी से क्रोध प्रकट कर लें, क्रिया से क्रोध प्रकट कर लें‚ मन से अमुक का बुरा सोच लें‚ किन्तु वेग भले ही आवे, आप उसे सहने के लिए तब तक सावधान रहें जब तक यह शरीर है। प्राक् शरीरविमोक्षणात्। यह सामर्थ्य मृत्युपर्यन्त तुम्हारे अन्दर रहे, जीवन के अन्तिम क्षण तक मन में उत्साह बना रहे कि हम काम, क्रोध के वेग को सह लगे। हमारा संचालक राम होगा, हम सहज भाव से चलेंगे और काम, क्रोध के वेग का कोई प्रभाव हम पर नहीं पड़ेगा। यह असम्भव नहीं। जब काम, क्रोध का वेग आये तो किसी दूसरे श्रम के काम में लग जाओ‚ कुछ बढ़िया-सी बात पढ़ने लगो, परमात्मा के स्वरूप का ध्यान करने लगो। कहीं-न-कहीं अपने मन को लगाने का प्रयास करो। उड़िया बाबा जी महाराज [[महाभारत]] का एक [[श्लोक]] बोलते थे- |
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− | + | '''वाचो वेगं मनसां क्रोधवेगं हिंसावेगमुदरोपस्थवेगम्।''' | |
− | + | '''एतान् वेगान् यस्तु सहेत धीरो निन्दा चास्य हृदयं नोपहन्यात्।।'''</poem> | |
| style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|right|link=गीता दर्शन -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 311]] | | style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|right|link=गीता दर्शन -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 311]] | ||
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12:50, 21 दिसम्बर 2017 का अवतरण
गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-2 : अध्याय 5
प्रवचन : 10
हमको बचपन में हमारे गुरु जी ने एक मन्त्र बताया- ‘क्लैब्यं मा स्म गमः।’ मैं कहता था कि ‘मुझसे साधन नहीं होगा, आसन नहीं, प्राणायाम नहीं होगा। मेरा मन एकाग्र नहीं होगा।’ इसपर गुरु जी बोलते थे-‘क्लैब्यं मा स्म गमः। अरे, नपुंसक मत बन। यह तो नामर्द का, कायर का काम है। तुम तो यह सोचो कि जो भी आपत्ति-विपत्ति या परिस्थिति हमारे सामने आयेगी, उसका हम डटकर सामना करेंगे, मुकाबला करेंगे, भागने से क्या होता है? तो भाई, इस बात को आप ध्यान में रखिये। पशुओं के मन में काम, क्रोध का वेग आता है तो वे उसको तुरन्त चरितार्थ कर लेते हैं। उन्होंने कहीं हरी-हरी घास देखी और मन में आया तो मुँह मार दिया, लेकिन पशुओं में भी जो अच्छे कुत्ते होते हैं, उनके सामने भोजन रखा रहने पर भी तब तक नहीं खाते, जब तक मालिक उनको खाने के लिए न कहे। अच्छे कुत्ते का यही लक्षण है कि आपके घर में खाने-पीने की बढ़िया से बढ़िया चीजें रखी हों लेकिन वह अपनी मर्जी से उसमें मुँह न लगावे। जर्मनी से एक व्यक्ति आया था। उसके साथ उसका अल्सेशियन कुत्ता था। वह उसे जूता सुंघा देता और कह देता कि ‘बैठो’। फिर जब तक वह लौटकर नहीं आता, उसका कुत्ता वहीं बैठा रहता। वह बिना दिये कुछ भी खाता नहीं था। कितनी वफादारी थी उस कुत्ते में। परन्तु मनुष्य अपने मन और इन्द्रियों को रोक नहीं सकता। काम का वेग आता है कि भोग लें, क्रोध का वेग आता है कि अमुक को सता लें, दुख दे लें‚ वाणी से क्रोध प्रकट कर लें, क्रिया से क्रोध प्रकट कर लें‚ मन से अमुक का बुरा सोच लें‚ किन्तु वेग भले ही आवे, आप उसे सहने के लिए तब तक सावधान रहें जब तक यह शरीर है। प्राक् शरीरविमोक्षणात्। यह सामर्थ्य मृत्युपर्यन्त तुम्हारे अन्दर रहे, जीवन के अन्तिम क्षण तक मन में उत्साह बना रहे कि हम काम, क्रोध के वेग को सह लगे। हमारा संचालक राम होगा, हम सहज भाव से चलेंगे और काम, क्रोध के वेग का कोई प्रभाव हम पर नहीं पड़ेगा। यह असम्भव नहीं। जब काम, क्रोध का वेग आये तो किसी दूसरे श्रम के काम में लग जाओ‚ कुछ बढ़िया-सी बात पढ़ने लगो, परमात्मा के स्वरूप का ध्यान करने लगो। कहीं-न-कहीं अपने मन को लगाने का प्रयास करो। उड़िया बाबा जी महाराज महाभारत का एक श्लोक बोलते थे- वाचो वेगं मनसां क्रोधवेगं हिंसावेगमुदरोपस्थवेगम्। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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