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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''भाग-3 : अध्याय 6'''</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''भाग-3 : अध्याय 6'''</div> | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''प्रवचन : 4'''</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''प्रवचन : 4'''</div> | ||
<poem style="text-align:center;"> | <poem style="text-align:center;"> | ||
− | ; | + | ;सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु। |
;साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते।।<ref> 6.9</ref></poem> | ;साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते।।<ref> 6.9</ref></poem> | ||
− | इसका तात्पर्य है कि अपने बचाओ। पक्षी मत बनो। आदमी धरती पर रहने के लिए है। जो पक्षपात करता है वह पक्षी हो जाता है। जिसमें पक्ष हो, उसका नाम पक्षी। भलेमानुष निष्पक्ष होते हैं। उसे कहते हैं कि वह निष्पक्ष है। कोई सुहृद् है, भला करता है। कोई मित्र है, स्नेह करता है। कोई अरि है शत्रुता कर रहा है। कोई उदासीन है, उसे किसी से मतलब नहीं। कोई पंचायत करने के लिए पहुँच जाता है। किसी-किसी का यह स्वभाव होता है कि यदि सड़क पर दो आदमी आपस में लड़ रहे हों, तो वे मोटर रोक कर उनकी लड़ाई छुड़ाने के लिए जाते हैं और पिटकर आते हैं। असल में मनुष्य के मन में इतना आग्रह रहता है कि वह किसी के समझाने से उसको नहीं छोड़ता। हम तो अपनी मध्यस्थ बनने की वासना पूरी करने के लिए ही उसे | + | इसका तात्पर्य है कि अपने बचाओ। पक्षी मत बनो। आदमी धरती पर रहने के लिए है। जो पक्षपात करता है वह पक्षी हो जाता है। जिसमें पक्ष हो, उसका नाम पक्षी। भलेमानुष निष्पक्ष होते हैं। उसे कहते हैं कि वह निष्पक्ष है। कोई सुहृद् है, भला करता है। कोई मित्र है, स्नेह करता है। कोई अरि है शत्रुता कर रहा है। कोई उदासीन है, उसे किसी से मतलब नहीं। कोई पंचायत करने के लिए पहुँच जाता है। किसी-किसी का यह स्वभाव होता है कि यदि सड़क पर दो आदमी आपस में लड़ रहे हों, तो वे मोटर रोक कर उनकी लड़ाई छुड़ाने के लिए जाते हैं और पिटकर आते हैं। असल में मनुष्य के मन में इतना आग्रह रहता है कि वह किसी के समझाने से उसको नहीं छोड़ता। हम तो अपनी मध्यस्थ बनने की वासना पूरी करने के लिए ही उसे समझाने जाते हैं। |
<poem style="text-align:center;">ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः</poem> | <poem style="text-align:center;">ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः</poem> | ||
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16:36, 3 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 4
इसका तात्पर्य है कि अपने बचाओ। पक्षी मत बनो। आदमी धरती पर रहने के लिए है। जो पक्षपात करता है वह पक्षी हो जाता है। जिसमें पक्ष हो, उसका नाम पक्षी। भलेमानुष निष्पक्ष होते हैं। उसे कहते हैं कि वह निष्पक्ष है। कोई सुहृद् है, भला करता है। कोई मित्र है, स्नेह करता है। कोई अरि है शत्रुता कर रहा है। कोई उदासीन है, उसे किसी से मतलब नहीं। कोई पंचायत करने के लिए पहुँच जाता है। किसी-किसी का यह स्वभाव होता है कि यदि सड़क पर दो आदमी आपस में लड़ रहे हों, तो वे मोटर रोक कर उनकी लड़ाई छुड़ाने के लिए जाते हैं और पिटकर आते हैं। असल में मनुष्य के मन में इतना आग्रह रहता है कि वह किसी के समझाने से उसको नहीं छोड़ता। हम तो अपनी मध्यस्थ बनने की वासना पूरी करने के लिए ही उसे समझाने जाते हैं। ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 6.9
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