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<h3 style="text-align:center">'''गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज'''</h3> | <h3 style="text-align:center">'''गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज'''</h3> | ||
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;उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्। | ;उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्। | ||
;आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ।।<ref>6.5</ref> | ;आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ।।<ref>6.5</ref> | ||
− | ;बन्धुरात्मात्मनस्तस्य | + | ;बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मनाजितः। |
;अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्।।<ref>6.6</ref></poem> | ;अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्।।<ref>6.6</ref></poem> | ||
− | आप अपना उद्धार अपने आप कीजिए। अपने आपसे दुश्मनी मत कीजिए। यदि धरती पर गिर पड़े हो तो कोई दोष नहीं। गिरना कोई अपराध नहीं, अपराध तो गिरकर न उठना और उठकर न बढ़ना है। आप गिर पड़े हैं, इसकी कोई परवाह नहीं। यही तो भक्तों का आश्वासन है। यही आध्यात्मिक साधना है। आपके मन में चाहें कितना भी पतन | + | आप अपना उद्धार अपने आप कीजिए। अपने आपसे दुश्मनी मत कीजिए। यदि धरती पर गिर पड़े हो तो कोई दोष नहीं। गिरना कोई अपराध नहीं, अपराध तो गिरकर न उठना और उठकर न बढ़ना है। आप गिर पड़े हैं, इसकी कोई परवाह नहीं। यही तो भक्तों का आश्वासन है। यही आध्यात्मिक साधना है। आपके मन में चाहें कितना भी पतन आ गया हो, वह आपको कहता है कि '''उद्धरेत्'''-उद्धार करो। यह नहीं कि गिरने पर कोई दूसरा आकर आपको उठावे। गुरु जी उठा दें, ईश्वर उठा दे, प्रारब्ध उठा दे। [[गीता]] कहती है कि ‘उद्धरेदात्मनात्मानम्’- तुम स्वयं अपने को ऊपर उठाओ, अपना उद्धार करो। |
<poem style="text-align:center;">ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः</poem> | <poem style="text-align:center;">ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः</poem> | ||
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15:18, 3 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 3
आप अपना उद्धार अपने आप कीजिए। अपने आपसे दुश्मनी मत कीजिए। यदि धरती पर गिर पड़े हो तो कोई दोष नहीं। गिरना कोई अपराध नहीं, अपराध तो गिरकर न उठना और उठकर न बढ़ना है। आप गिर पड़े हैं, इसकी कोई परवाह नहीं। यही तो भक्तों का आश्वासन है। यही आध्यात्मिक साधना है। आपके मन में चाहें कितना भी पतन आ गया हो, वह आपको कहता है कि उद्धरेत्-उद्धार करो। यह नहीं कि गिरने पर कोई दूसरा आकर आपको उठावे। गुरु जी उठा दें, ईश्वर उठा दे, प्रारब्ध उठा दे। गीता कहती है कि ‘उद्धरेदात्मनात्मानम्’- तुम स्वयं अपने को ऊपर उठाओ, अपना उद्धार करो। ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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