सपना वर्मा (वार्ता | योगदान) ('<div class="bgmbdiv"> <h3 style="text-align:center">'''गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
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यदि आप थोड़ी देर बैठकर बुद्धि के बारे में विचार नहीं करेंगे तो वह गलत हो जायेगी और उसके गलत होने के कारण सारा जीवन गलत हो जायेगा। बुद्धि शुद्ध रहनी चाहिए।अतः मनुष्य बुद्धि से विचलित नह हो, इसके लिए योग की आवश्यकता होती है। योग बुद्धि को ठीक करने का उपाय है। | यदि आप थोड़ी देर बैठकर बुद्धि के बारे में विचार नहीं करेंगे तो वह गलत हो जायेगी और उसके गलत होने के कारण सारा जीवन गलत हो जायेगा। बुद्धि शुद्ध रहनी चाहिए।अतः मनुष्य बुद्धि से विचलित नह हो, इसके लिए योग की आवश्यकता होती है। योग बुद्धि को ठीक करने का उपाय है। | ||
− | यह विडम्बना देखो कि मनुष्य के शरीर में किसी रोग की सम्भावना हो जाये तो वह पहले से ही उसकी दवा करता है। डाक्टर लोग तो मनुष्य को डरा-डराकर भी अपनी जीविका चलाते है। आपमें -से कोई डाक्टर हो तो माफ करें। किसी को छींक आयी, खाँसी हुई, तो डाक्टर कहते हैं कि अभी से दवा करो नहीं तो दमा हो जायेगा। दमा तो पता नहीं कहाँ है, भय उसका जरूर पैदा कर देते हैं। मनुष्य अपने शरीर से भी जो | + | यह विडम्बना देखो कि मनुष्य के शरीर में किसी रोग की सम्भावना हो जाये तो वह पहले से ही उसकी दवा करता है। डाक्टर लोग तो मनुष्य को डरा-डराकर भी अपनी जीविका चलाते है। आपमें -से कोई डाक्टर हो तो माफ करें। किसी को छींक आयी, खाँसी हुई, तो डाक्टर कहते हैं कि अभी से दवा करो नहीं तो दमा हो जायेगा। दमा तो पता नहीं कहाँ है, भय उसका जरूर पैदा कर देते हैं। मनुष्य अपने शरीर से भी जो महत्त्वपूर्ण वस्तुः अन्तःकरण है, बुद्धि है उसकी स्वस्थता के लिए मनुष्य प्रयत्नशील नहीं है। |
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[[चित्र:Next.png|right|link=गीता दर्शन -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 392]] | [[चित्र:Next.png|right|link=गीता दर्शन -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 392]] |
01:06, 21 अगस्त 2017 का अवतरण
गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 6
योग का उद्देश्य है दुःखी को सुखी करना। योगाचार्य पतंजलि के सम्बन्ध में यह प्रसिद्ध है कि उन्होंने शरीर के मलको दूर करने लिए चरक के नाम से आयुर्वेदशास्त्र का, वणी के मल को दूर करने के लिए महाभाष्य का और चितके मल को दूर करने के लिए योगदर्शन का निर्माण किया। मन निर्मल हो, शरीर स्वस्थ हो और वाणी पवित्र हो- ये तीन गुण यदि मनुष्य में हों तो उसके जीवन को पूर्ण कह सकत हैं। ब्रह्म होने, ब्रह्म सुख में जाने और समाधि लगाने-वाली बात अलग है। मुझे एक महात्मा ने बताया था कि ‘मैं जीवन में तीन बातें देखना चाहता हूँ- शरीर स्वस्थ रहे, चरित्र पवित्र रहे और मन में सबके प्रति सद्भाव रहे। यदि किसी में ये तीन बातें हैं तो मैं उसके जीवन को उत्तमोत्तम मनाने को तैयार हूँ।’ तो, बुद्धि को ठीक-ठीक रखने के लिए थोड़ी देर तक एकान्त में बैठकर उसका पर्यवक्षण करना चाहिए। उसकी जाँच-पड़ताल पूरी तरह कर लेनी चाहिए। यह कब, कहाँ किस कारण से अभिमान करती है, फँस जाती है, जलने लगती है, वासना से विवश होकर गलत रास्ते पर चलने लगती है, यह देखने की बात है। यदि आप थोड़ी देर बैठकर बुद्धि के बारे में विचार नहीं करेंगे तो वह गलत हो जायेगी और उसके गलत होने के कारण सारा जीवन गलत हो जायेगा। बुद्धि शुद्ध रहनी चाहिए।अतः मनुष्य बुद्धि से विचलित नह हो, इसके लिए योग की आवश्यकता होती है। योग बुद्धि को ठीक करने का उपाय है। यह विडम्बना देखो कि मनुष्य के शरीर में किसी रोग की सम्भावना हो जाये तो वह पहले से ही उसकी दवा करता है। डाक्टर लोग तो मनुष्य को डरा-डराकर भी अपनी जीविका चलाते है। आपमें -से कोई डाक्टर हो तो माफ करें। किसी को छींक आयी, खाँसी हुई, तो डाक्टर कहते हैं कि अभी से दवा करो नहीं तो दमा हो जायेगा। दमा तो पता नहीं कहाँ है, भय उसका जरूर पैदा कर देते हैं। मनुष्य अपने शरीर से भी जो महत्त्वपूर्ण वस्तुः अन्तःकरण है, बुद्धि है उसकी स्वस्थता के लिए मनुष्य प्रयत्नशील नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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