छो (Text replacement - "| [[चित्र:Next.png|" to "| style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|") |
छो (Text replacement - "|- | [[चित्र:Prev.png|" to "|- | style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Prev.png|") |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
{| width=100% cellspacing="10" style="background:transparent text-align:justify " | {| width=100% cellspacing="10" style="background:transparent text-align:justify " | ||
|- | |- | ||
− | | [[चित्र:Prev.png|left|link=गीता दर्शन -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 379]] | + | | style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Prev.png|left|link=गीता दर्शन -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 379]] |
| | | | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''भाग-3 : अध्याय 6'''</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''भाग-3 : अध्याय 6'''</div> |
01:42, 12 जून 2016 का अवतरण
गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 4
इसका तात्पर्य है कि अपने बचाओ। पक्षी मत बनो। आदमी धरती पर रहने के लिए है। जो पक्षपात करता है वह पक्षी हो जाता है। जिसमें पक्ष हो, उसका नाम पक्षी। भलेमानुष निष्पक्ष होते हैं। उसे कहते हैं कि वह निष्पक्ष है। कोई सुहृद् है, भला करता है। कोई मित्र है, स्नेह करता है। कोई अरि है शत्रुता कर रहा है। कोई उदासीन है, उसे किसी से मतलब नहीं। कोई पंचायत करने के लिए पहुँच जाता है। किसी-किसी का यह स्वभाव होता है कि यदि सड़क पर दो आदमी आपस में लड़ रहे हों, तो वे मोटर रोक कर उनकी लड़ाई छुड़ाने के लिए जाते हैं और पिटकर आते हैं। असल में मनुष्य के मन में इतना आग्रह रहता है कि वह किसी के समझाने से उसको नहीं छोड़ता। हम तो अपनी मध्यस्थ बनने की वासना पूरी करने के लिए ही उसे समझान जाते हैं। ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 6.9
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज