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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''भाग-3 : अध्याय 6'''</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''भाग-3 : अध्याय 6'''</div> |
01:34, 12 जून 2016 का अवतरण
गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 3
आप अपना उद्धार अपने आप कीजिए। अपने आपसे दुश्मनी मत कीजिए। यदि धरती पर गिर पड़े हो तो कोई दोष नहीं। गिरना कोई अपराध नहीं, अपराध तो गिरकर न उठना और उठकर न बढ़ना है। आप गिर पड़े हैं, इसकी कोई परवाह नहीं। यही तो भक्तों का आश्वासन है। यही आध्यात्मिक साधना है। आपके मन में चाहें कितना भी पतन आगया हो, वह आपको कहता है कि उद्धरेत्-उद्धार करो। यह नहीं कि गिरने पर कोई दूसरा आकर आपको उठावे। गुरुजी उठा दें, ईश्वर उठा दे, प्रारब्ध उठा दे। गीता कहती है कि ‘उद्धरेदात्मनात्मानम्’- तुम स्वयं अपने को ऊपर उठाओ, अपना उद्धार करो। ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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