"सूरसागर प्रथम स्कन्ध" श्रेणी में पृष्ठ इस श्रेणी में निम्नलिखित 147 पृष्ठ हैं, कुल पृष्ठ 347 (पिछले 200) (अगले 200)भ भ-क्तछल प्रभु नाम तुम्हारौ -सूरदास भए पांडवनि के हरि दूत -सूरदास भक्त बछलता प्रगट करी -सूरदास भक्तनि हित तुम कहा न कियौ -सूरदास भक्तबछल श्री जादवराइ -सूरदास भक्ति कब करिहौ जनम सिरानौ -सूरदास भक्ति बिना जौ कृपा न करते -सूरदास भक्ति बिनु बैल विराने ह्वैहौ -सूरदास भक्त जमुने सुगम, अगम औरें -सूरदास भजहु न मेरे स्याम मुरारी -सूरदास भजि मन नंद-नंदन-चरन -सूरदास भयौ भागवत जा परकार -सूरदास भरोसौ नाम कौ भारी -सूरदास भवसागर मैं पैरि न लीन्हौ -सूरदास भावी काहू सौं न टरै -सूरदास भीषम धरि हरि कौ उर ध्यान -सूरदास भृंगी री भजि स्याम-कमल पद -सूरदासम मतौ यह पूछत भूतलराइ -सूरदास मन तोसौं किती कही समुझाइ -सूरदास मन तोसौं कोटिक बार कही -सूरदास मन बस होत नाहिनै मेरै -सूरदास मन राम-नाम-सुमिरन बिनु -सूरदास मन रे माधब सौं करि प्रीति -सूरदास मन-बच-क्रम मन -सूरदास महा प्रभु तुम्हें बिरद की लाज -सूरदास माधो जू मोहि काहे की लाज -सूरदास माधौ जू जौ जन तै बिगरै -सूरदास माधौ जू तुम कब जिय बिसरौ -सूरदास माधौ जू मन माया बस कीन्हौ -सूरदास माधौ जू मन सबही विधि पोच -सूरदास माधौ जू मन हठ कठिन परयौ -सूरदास माधौ जू मोतै और न पापी -सूरदास माधौ जू यह मेरी इक गाइ -सूरदास माधौ जू हों पतित-सिरोमनि -सूरदास माधौ नैंकु हटकौ गाइ -सूरदास माया देखत ही जु गई -सूरदास मावौ जू सो अपराधी हौ -सूरदास मेरी कौन गति ब्रजनाथ -सूरदास मेरी तौ गति-मति तुम -सूरदास मेरी बेर क्यौं रहे सोचि -सूरदास मेरी सुधि लीजौ हो ब्रजराज -सूरदास मेरे हृदय नाहिं आवत हो -सूरदास मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै -सूरदास मेरौ मन मति-हीन गुसाई -सूरदास मैं तौ अपनी कही बड़ाई -सूरदास मो अनाथ के नाथ हरी -सूरदास मो सम कौन कुटिल खल कामी -सूरदास मोसौ पतित न और हरे -सूरदास मोसौं बात सकुच तजि कहियै -सूरदास म आगे. मोहन के मुख ऊपर बारी -सूरदास मोहिं प्रभु तुमसों होड़ परी -सूरदासय यह आसा पापिनी दहै -सूरदास यह सब मेरीयै आइ कुमति -सूरदास यह सुनि राजा रोइ पुकारे -सूरदास यहई मन आनंद-अवधि सब -सूरदास या बिधि राजा करयौ बिचारि -सूरदासर रह्यौ मन सुमिरन कौ पछितायौ -सूरदास राखौ पति गिरिवर गिरिधारी -सूरदास राजा सौं अर्जुन सिर नाइ -सूरदास राम न सुमिरयौं एक घरी -सूरदास राम भक्तवत्सल निज वानौ -सूरदास रे मन आपु कौं पहिचानि -सूरदास रे मन गोविंद के ह्वै रहियै -सूरदास रे मन छाँड़ि विषय को रेंचिवो -सूरदास रे मन जग पर जानि उगायौ -सूरदास रे मन जनम अकारथ खोइति -सूरदास रे मन निपट निलज अनिति -सूरदास रे मन मूरख जनम गँवायौ -सूरदास रे मन राम सौं करि हेत -सूरदास रे मन समुझि सोचि बिचारि -सूरदास रे मन सुमिरि हरि हरि हरि -सूरदास रे सेठ बिन गोविंद सुख नाहीं -सूरदासल लाज मेरी राखौ स्याम हरी -सूरदासव वंदौ चरन-सरोज तिहारे -सूरदास वा पट पीत की फहरानि -सूरदास विनती सुनौ दीन की चित दै -सूरदास विरथा जन्म लियौ संसार -सूरदासश श्री नाथ सासंगधर कृपा करि दीन पर -सूरदास श्रीमुख चारि श्लोक दए ब्रह्मा कौं समुझाह -सूरदासस सब तजि भजिऐ नंद कुमार -सूरदास सबनि सनेहौ छाँड़ि दयौ -सूरदास सबै दिन गए विषय के हेत -सूरदास सरन आए को प्रभु -सूरदास सरन गए को को न उबारयौ -सूरदास सांचौ सो लिखहार कहावै -सूरदास सुक नृप और कृपा करि देख्यौ -सूरदास सुनि राजा दुर्जोधन -सूरदास सुरसरी–सुबन रनभूमि आए -सूरदास सुवा चलि ता बन कौ रस पीजै -सूरदास सूत ब्यास सौं हरि-गुन सुने -सूरदास सूर कहै भागवत विचारि -सूरदास सूर कह्यौ भागवत बिचार -सूरदास सूर कह्यौ भागवतऽनुसारि -सूरदास सूर स्याम भक्तनि मन भाइ -सूरदास सूर स्याम भक्तनि सुखदाइ -सूरदास सूर स्याम मैटै संताप -सूरदास सो कहा जु मैं न कियौं -सूरदास सोइ कछु कीजै दीन-दयाल -सूरदास स आगे. स्याम गरीबनि हूँ के ग्राहक -सूरदास स्याम भजन-बिनु कौन बड़ाई -सूरदास स्याम-बलराम कौं सदा गाऊँ -सूरदास स्वपचहु स्त्रेष्ट होत पद सेवत -सूरदासह हम तैं बिदुर कहा है नीकौं -सूरदास हम भक्तनि के भक्त हमारे -सूरदास हमारी तुमकौं लाज हरी -सूरदास हमारे निर्धन के धन राम -सूरदास हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ -सूरदास हमैं नँदनंदन मोल लिये -सूरदास हरि की कथा होइ जब जहाँ -सूरदास हरि की सरन महँ तू आउ -सूरदास हरि के जन की अति ठकुराई -सूरदास हरि के जन सब तैं अधिकारी -सूरदास हरि जू तुम तै कहा न होइ -सूरदास हरि जू, हौं यातैं दुख-पात्र -सूरदास हरि ठाढे रथ चढे दुवारे -सूरदास हरि तुव माया को न विगोयौ -सूरदास हरि तैरौ भजन कियौ न जाइ -सूरदास हरि पतित-पावन दीन-बंधु -सूरदास हरि परीच्छितहि गर्भ मँझार -सूरदास हरि परीच्छितहि गर्भ मँझार2 -सूरदास हरि बिन अपनौ को संसार -सूरदास हरि बिनु को पुरवै मो स्वारथ -सूरदास हरि बिनु मीत नहीं कीउ तेरे -सूरदास हरि सौं ठाकुर और न जन कौं -सूरदास हरि सौं भीषम बिनय सुनाई -सूरदास हरि सौं मीत न देख्यौ कोई -सूरदास हरि हरि-भक्तनि कौं सिर नाऊँ -सूरदास हरि हरि-भक्तनि कौं सिर नाऊँ2 -सूरदास हरि हरि-भक्तनि कौं सिर नाऊँ3 -सूरदास हरि हौ सब पतितनि कौ राउ -सूरदास हरि हौं महा अधम संसारी -सूरदास हरि हौं महापतित अभिमानी -सूरदास हरि हौं सब पतितनि-पतितेस -सूरदास हरि, तुम क्यौं न हमारैं आए -सूरदास हरि, हौं ऐसो अमल कमायौ -सूरदास हरि, हौं सब पतितनि कौ नायक -सूरदास हरि, हौं सब पतितनि कौ राजा -सूरदास हरि-जस-कथा सुनौ चित लाइ -सूरदास हरै बलबीर बिना को पीर -सूरदास हारी जानि परी हरि मेरी -सूरदास हुरि जू मोसौ पतित न आन -सूरदास हृदय की कबहुँ न जरनि घटी -सूरदास हे मन अजहूँ क्यौं न सम्हारै -सूरदास है हरि-भजन कौ परमान -सूरदास हो तौ पतित-सिरोमनि माधौ -सूरदास होउ मन राम-नाम कौ गाहक -सूरदास होत सो जो रघुनाथ ठटै -सूरदास (पिछले 200) (अगले 200)