हरि तुव माया को न विगोयौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग केदारौ



            

हरि, तुव माया को न बिगोयौ।
सौ जोजन मरजाद सिंधु की, पल मैं राम बिलोयौ।
नारद मगन भए माया मैं, ज्ञान-बुद्धि-बल खोयौ।
साठि पुत्र अरु द्वादस कन्‍या, कंठ लगाए जोयौ।
संकर को मन हरयौ कामिनी, सेज छाँड़ि भू सोयौ।
चारु मोहिनी आइ आँघ कियौ, तब नख-सिख तैं रोयौ।
सौ भैया दुरजोधन राजा, पल मैं गरद समोयौ।
सूरदास कंचन अरु काँचहिं, एकहि घगा पिरोयौ।।43।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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