हरि, तुव माया को न बिगोयौ।
सौ जोजन मरजाद सिंधु की, पल मैं राम बिलोयौ।
नारद मगन भए माया मैं, ज्ञान-बुद्धि-बल खोयौ।
साठि पुत्र अरु द्वादस कन्या, कंठ लगाए जोयौ।
संकर को मन हरयौ कामिनी, सेज छाँड़ि भू सोयौ।
चारु मोहिनी आइ आँघ कियौ, तब नख-सिख तैं रोयौ।
सौ भैया दुरजोधन राजा, पल मैं गरद समोयौ।
सूरदास कंचन अरु काँचहिं, एकहि घगा पिरोयौ।।43।।