मेरी बेर क्‍यौं रहे सोचि -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग नट



            

मेरी बेर क्‍यौं रहे सोचि ?
काटि कै अध-फाँस पठवहू, ज्‍यौं दियौ गज मोचि।
कौन करनी घाटि मोसौं, सो करौं फिरि काँधि।
न्‍याइ कै नहिं खुनुस कीजै, चूक पल्‍लैं बाँधि।
मैं कछू करिबे न छाँड्यौ, या सरीरहिं पाइ।
तऊ मेरौ मन न मानत, रह्यौ अध पर छाइ।
अब कछू हरि कसरि नाहीं, कत लगावत बार।
सूर प्रभु यह जानि पदवी, चलत बैलहिं आर।।199।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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