यह सुनि राजा रोइ पुकारे -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग बिलावल




यह सुनि राजा रोइ पुकारे। भीमादिक रोए पुनि सारे।
रोवत सुनि कुंती तहँ आई। कहौ, कुसल जादौ-जदुराई ?
अर्जुन कह्यौ, सबै नरि मुए। हरि बिनु सब अनाथ हम हुए।
कुंती प्रान तजे धरि ध्‍यान। जीवन मरन उनहिं भल जान।
राज परीच्छित को नृप दीन्‍हौ। बज्रनाभ मथुरापति कीन्‍हौ।
द्रुपद-सुता समेत सब भाई। उत्तर दिसा गए हरि ध्‍याई।
जोग पंथ करि उन तनु तजे। सूर सबै तजि हरि-पद भजे।।288।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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