राखौ पति गिरिवर गिरिधारी -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग मारू




राखौ पति गिरिवर गिरिधारी !
अब तौ नाथ, रह्यौ कछु नाहिन, उधरत माथ अनाथ पुकारी।
बैठी सभा सकल भूपनि की, भीषम-द्रोन-‍करन ब्रतबारी।
कहि न सकत कोउ बात वदन पर, इन पतितनि मो अपति बिचारी।
पांडु-कुमार पवन से डोलत, भीम गदा कर तैं महि डारी।
रही न पैज प्रबल पारथ की, जब तै धरम-सुत धरनी हारी।
अब तौ नाथ न मेरौ कोई, बिनु श्रीनाथ-मुकुंद-मुरारी।
सूरदास अवसर के चूकैं, फिरि पछितैहौं देखि उबारी।।248।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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