मन राम-नाम-‍सुमिरन बिनु -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्रीं




(मन) राम-नाम-‍सुमिरन बिनु, बादि जनम खोयौ।
रंचक सुख कारन तैं अंत क्‍यौं बिगोयौ।
साधु-संग, भझि बिना, तन अकार्थ जाई।
ज्‍वारी ज्‍यौं हाथ झारि, चाल छुटकाई।
दारा-सुत, देह-गेह, संपति सुखदाई।
इनमैं कछु नाहिं तेरौ, काल-अवधि आई।
काम-क्रोध-लोभ-मोह-तृष्‍ना मन मोयौ।
गोविंद-गुन चित बिसारि, कौन नींद सोयौ।
सूर कहै चित बिचारि, भूल्‍यौ भ्रम अंधा।
राम-राम भजि लै, तजि औंर सकल धंधा।।330।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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