सरन गए को को न उबारयौ।
जब जब भीर परी संतनि कौं चक्र सुदरसन तहाँ सँभारयौ।
भयौ प्रसाद जु अंबरीष कौं, दुरबासा कौ क्रोध निवारयौ।
ग्वालनि हेत धरयौ गोवर्धन, प्रकट इंद्र को गर्व प्रहारयौ।
कृपा करी प्रहलाद भक्त पर, खंभ फारि हिरनाकुस मारयौ।
नरहरि रुप घरयौ करुनाकर, छिनक माहिं उर नखनि विदारयौ।
ग्राह ग्रसत गज कौं जल बूढ़त, नाम लेत वाकौ दुख टारयौ।
सूर स्याम बिनु और फरै को, रंग-भूमि मैं कंस पछारयौ।।14।।