वा पट पीत की फहरानि।
कर धरि चक्र, चरन की धावनि, नहिं बिसरति वह बानि।
रथ तैं उतरि चलनि आतुर ह्वँ, कच रज की लपटानि।
मानौं सिंह सैल तैं निकस्यौ, महा मत्त गज जानि।
जिन गोपाल मेरौ प्रन राख्यौ, मेटि बेद की कानि।
सोई सूर सहाइ हमारे, निकट भए हैं आनि।।।279।।