हरि सौं भीषम बिनय सुनाई। कृपा करी तुम जादवराई।
भारत मैं मेरौ प्रन राख्यौ। अपनौ कह्यौ दूरि करि नाख्यौ।
तुम बिनु प्रभु को ऐसी करै। जो भक्तिन कें बस अनुसरै।
तब दरसन सुर-नर-मुनि दुर्लभ। मौकौं भयौ सों अतिहीं सुर्लभ।
दूरि नहीं गोविंद वह काल। सूर कृपा कीजै गोपाल।।277।।