हरि तैरौ भजन कियौ न जाइ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग बिहागरौ



हरि तैरौ भजन कियौ न जाइ।
कह करौं, तेरी प्रबल माया देति मन भरमाइ।
जबै आवौं साधु-संगति, कछुक मन ठहराइ।
ज्‍यौं गयंद अन्‍हाइ सरिता बहुरि वहै सुभाइ।
बेष धरि धरि हरयौ पर-धन साधु-साधु कहाइ।
जैसैं नटवा लोभ-कारन करत स्‍वाँग बनाइ।
करौं जतन, न भजौं तुमकौं, कछुक मन उपजाइ।
सूर प्रभु की सबल माया, देति मोहि भुलाइ।।45।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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