है हरि-भजन कौ परमान -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग केदारौ




है हरि-भजन कौ परमान।
नीच पावैं ऊँच पदवी, बाजते नीसान।
भजम कौ परता ऐसौ, जल तरै पाषान।
अजामिल अरु भीलि गनिका, चढे जात विमान।
चलत तारे सकल मंतल, चलत ससि अरु भान।
भक्‍त ध्रुव कौं अटल पदवी, राम के दीवान।
निगम जाकौ सुजस गावत, सुनत संत सुजान।
सूर हरि की सरन आयौ राखि लै भगवान।।235।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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