सबनि सनेहौ छाँ‍ड़ि दयौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग देवगंधार



सबनि सनेहौ छाँ‍ड़ि दयौ।
हा जदुनाथ ! जरा तन ग्रास्‍यौ, प्रतिभौ उतरि गयौ।
सोइ तिथि-बार-नछत्र-लगन-ग्रह, सोइ जिहिं ठाठ ठयौ।
तिन अंकनि कोउ फिरि नहिं बाँचत, गत स्‍वारथ समयौ।
सोइ धन-धाम, नाम सोई, कुल सोई जिहि बिढ़यौ।
अब सबही कौ बदन स्‍वान लौं, चितवत दूरि भयौ।
बरष दिवस करि होत पुरातन, फिरि-फिरि लिखत नयौ।
निज कृति-दोष बिचारि सूर प्रभु तुम्‍हरी सरन गयौ।।298।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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