रे मन गोविंद के ह्वै रहियै -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सारंग




रे मन, गोविंद के ह्वै रहियै।
इहिं संसार अपार बिरत ह्वै, जम की त्रास न सहियै।
दुख, सुख, कीरति, भाग आपनै आइ परै सो गहियै।
सूरदास भगवंत भजन करि अंत बार कछु लहियै।।62।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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