सभी पृष्ठ | पिछला पृष्ठ (उज्जयंत पर्वत) | अगला पृष्ठ (औग्रसेनी) |
- ऊधौ मोहि ब्रज बिसरत नाही -सूरदास
- ऊधौ मोहि ब्रज बिसरत नाहीं -सूरदास
- ऊधौ मौन साधि रहे -सूरदास
- ऊधौ यह न होइ रस रीति -सूरदास
- ऊधौ यह मन और न होइ -सूरदास
- ऊधौ यह मन ड़ौर न आवै -सूरदास
- ऊधौ यह मन डौर न आवै -सूरदास
- ऊधौ यह राधा सौ कहियौ -सूरदास
- ऊधौ यह हरि कहा करयौ -सूरदास
- ऊधौ यह हित लागत काहैं -सूरदास
- ऊधौ यहै अचंभौ बाढ़ -सूरदास
- ऊधौ यहै बिचार गहौ -सूरदास
- ऊधौ रथ बैठि चले -सूरदास
- ऊधौ राखियै यह बात -सूरदास
- ऊधौ लहनौ अपनौ पैयै -सूरदास
- ऊधौ लै चल लै चल -सूरदास
- ऊधौ वेद वचन प्रमान -सूरदास
- ऊधौ सुधि नाही या तन की -सूरदास
- ऊधौ सुनत तिहारे बोल -सूरदास
- ऊधौ सुनहु नैकु जो बात -सूरदास
- ऊधौ सुनौ बिथा तुम तात -सूरदास
- ऊधौ सूधै नैकु निहारौ -सूरदास
- ऊधौ स्याम इहाँ लै आवहु -सूरदास
- ऊधौ स्याम सखा तुम साँचे -सूरदास
- ऊधौ हम आजु भई बड़ भागी -सूरदास
- ऊधौ हम ऐसी नहीं जानी -सूरदास
- ऊधौ हम कत हरि तै न्यारी -सूरदास
- ऊधौ हम कह जानै जोग -सूरदास
- ऊधौ हम दूबरी वियोग -सूरदास
- ऊधौ हम दोउ कठिन परी -सूरदास
- ऊधौ हम ब्रजनाथ बिसारे -सूरदास
- ऊधौ हम लगी साँच के पाछे -सूरदास
- ऊधौ हम लायक सिख दीजै -सूरदास
- ऊधौ हम लायक हमसौं कहौ -सूरदास
- ऊधौ हम वह कैसे मानै -सूरदास
- ऊधौ हम हरि कत बिसराए -सूरदास
- ऊधौ हम है हरि की दासी -सूरदास
- ऊधौ हमरौ कछू दोष नहिं -सूरदास
- ऊधौ हमहि न जोग सिखैयै -सूरदास
- ऊधौ हमहिं कहा समुझावहु -सूरदास
- ऊधौ हरि कहियै प्रतिपालक -सूरदास
- ऊधौ हरि काहे के अंतरजामी -सूरदास
- ऊधौ हरि कुबिजा के मीत भए -सूरदास
- ऊधौ हरि के औरै ढंग -सूरदास
- ऊधौ हरि जू हित जमाइ -सूरदास
- ऊधौ हरि बिनु ब्रज रिपु -सूरदास
- ऊधौ हरि बेगहि देउ पठाइ -सूरदास
- ऊधौ हरि यह कहा बिचारी -सूरदास
- ऊधौ हरि रीझे धौ काहे -सूरदास
- ऊधौ हरि हीं पै ऐसी बनि आवत -सूरदास
- ऊधौ हरिगुन हम चकडोर -सूरदास
- ऊधौ है तू हरि के हित कौ -सूरदास
- ऊधौ होउ आगे तैं न्यारे -सूरदास
- ऊध्वर्ग
- ऊर्जयोनि
- ऊर्जस्कर
- ऊर्णनाभ
- ऊर्णायु
- ऊर्ध्वकेश (रुद्र)
- ऊर्ध्वग
- ऊर्ध्वभाक
- ऊर्ध्ववाहु
- ऊर्ध्ववेणीधरा
- ऊर्व
- ऊष्मप
- ऊष्मपायी
- ऊष्मा
- ऋक्ष
- ऋक्ष (अरिह पुत्र)
- ऋक्ष (बहुविकल्पी)
- ऋक्षदेव
- ऋक्षमालागत
- ऋक्षराज
- ऋक्षवान
- ऋक्षा
- ऋक्षाम्बिका
- ऋग्वेद
- ऋग्वेद
- ऋचीक
- ऋचीक (बहुविकल्पी)
- ऋचीक (भुमन्यु पुत्र)
- ऋचीक ऋषि
- ऋचीक मुनि का गाधिकन्या के साथ विवाह
- ऋचेय
- ऋचेयु
- ऋजु
- ऋजुदाय
- ऋणज्य
- ऋत
- ऋतधाम
- ऋतधामा
- ऋतु
- ऋतु बसंत के आगमहि -सूरदास
- ऋतु बसंत के आगमहि 2 -सूरदास
- ऋतु बसंत के आगमहि 3 -सूरदास
- ऋतुएँ
- ऋतुध्वज (रुद्र)
- ऋतुपर्ण
- ऋतुपर्ण का कुण्डिनपुर में प्रवेश
- ऋतुपर्ण का विदर्भ देश को प्रस्थान
- ऋतुपर्ण से नल को द्यूतविद्या के रहस्य की प्राप्ति
- ऋतुस्थला
- ऋतुस्थली
- ऋतेयु
- ऋत्वा
- ऋत्विजों के लक्षण
- ऋद्धि
- ऋभु
- ऋषभ
- ऋषभ (जंतु)
- ऋषभ (बहुविकल्पी)
- ऋषभ (राक्षस)
- ऋषभ (राजा)
- ऋषभ ऋषि
- ऋषभ का सुमित्र को वीरद्युम्न व तनु मुनि का वृतान्त सुनाना
- ऋषभ के उपदेश से सुमित्र का आशा को त्याग देना
- ऋषभ तीर्थ
- ऋषभ द्वीप
- ऋषभ पर्वत
- ऋषभदेव
- ऋषि
- ऋषि (अस्त्र)
- ऋषि (बहुविकल्पी)
- ऋषिक
- ऋषिक (बहुविकल्पी)
- ऋषिक (राजर्षि)
- ऋषिकुल्या
- ऋषिकेश (कृष्ण)
- ऋषिगिरि
- ऋषियों और राजाओं के मंगलमय नामों का कीर्तन-माहात्म्य
- ऋषियों का अनिष्ट करने से मेघावी की मृत्यु
- ऋषियों का कुन्ती और पाण्डवों को लेकर हस्तिनापुर जाना
- ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश
- ऋषियों का शिव की कृपा विषयक अपने-अपने अनुभव सुनाना
- ऋषियों का श्रीकृष्ण का प्रभाव देखना और उनसे वार्तालाप करना
- ऋषियों के प्रयत्न से सरस्वती नदी के शाप की निवृत्ति
- ऋषियों द्वारा कुरुक्षेत्र की सीमा और महिमा का वर्णन
- ऋषिवास
- ऋषीन्द्रोजित
- ऋष्टि अस्त्र
- ऋष्यमूक
- ऋष्यमूक पर्वत
- ऋष्यशृंग का पिता से वेश्या के स्वरूप तथा आचरण का वर्णन
- ऋष्यशृंग का लोमपाद के यहाँ आगमन
- ऋष्यशृंग को वेश्या द्वारा लुभाना जाना
- ऋष्यश्रृंग
- ए अलि कहा जोग मैं नीकौ -सूरदास
- ए अलि हमें तो बात गात की न जानि परै -पद्माकर
- ए री मो ही तौ पिउ भावै -सूरदास
- ए हो मेरी प्रानपियारी -सूरदास
- एइ कहियत बसुदेव कुमार -सूरदास
- एइ दोउ बसुदेव के ढोटा -सूरदास
- एइ माधौ जिन मधु मारे री -सूरदास
- एई सुत नंद अहीर के -सूरदास
- एक-एक पल बना युगों-सा -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- एक गाउँ के बसत बार इक -सूरदास
- एक गाउँ कै बास सखी हौं -सूरदास
- एक जाम नृप कौ निसि -सूरदास
- एक जाम नृप कौं निसि -सूरदास
- एक झाँकी -लक्ष्मणाचार्य महाराज
- एक तुम्हारे सिवा न राधे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- एक तुम्हीं में मन अटका है -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- एक तौ लालन लाड़ लड़ाई -सूरदास
- एक दिना मिलि प्यारी-प्रीतम -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- एक दिवस दानव प्रलंब कौं -सूरदास
- एक द्दौस कुंजन -सूरदास
- एक द्यौस कुंजन -सूरदास
- एक द्यौस कुंजनि मैं माई -सूरदास
- एक बात दुहुँ भाँति अटपटी -सूरदास
- एक बार ब्रज आइकै -सूरदास
- एक लकड़िया चन्दन की -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- एक लकड़िया तूत की -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- एक लकडिय़ा चन्दन की -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- एक लकडिय़ा तूत की -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- एक लालसा मन महँ धारौं -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- एक विरियाँ मुख बोलो रे -मीराँबाई
- एक समय मंदिर मैं देखे -सूरदास
- एक समय सुत कौ हलरावति -सूरदास
- एक समै जमुना-जल में सब मज्जन हेत -रसखान
- एक हार मोहि कहा दिखावति -सूरदास
- एक हार मोहिं कहा दिखावति -सूरदास
- एक ही बान संधानि रथ के तुरग -सूरदास
- एककुंडल
- एककुण्डल
- एकघातिनी शक्ति
- एकचक्र
- एकचक्रा
- एकचक्रा नगरी
- एकचन्द्रा
- एकचरण
- एकचूडा
- एकजट
- एकत
- एकत्वचा
- एकदंत
- एकदन्त
- एकनाथ
- एकपर्वतक
- एकपाद
- एकमात्र उनकी ही हूँ मैं -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- एकमात्र श्रीकृष्ण ही धन्य एवं श्रेष्ठ हैं -भिक्षु गौरीशंकर
- एकरात्र तीर्थ
- एकलव्य
- एकलव्य की गुरु-भक्ति
- एकलव्य की गुरुभक्ति
- एकशृंग
- एकशृंग (कृष्ण)
- एकशृंग (बहुविकल्पी)
- एकश्रृंग
- एकश्रृंग (कृष्ण)
- एकहिं बेर दई सब ठेरी -सूरदास
- एकाक्ष
- एकाक्ष (अनुचर)
- एकाक्ष (बहुविकल्पी)
- एकाग्नि अस्त्र
- एकादशी
- एकानंगा
- एकै अलख अपार आदि अविगत है सोई -सूरदास
- एकै संग हाल नंदलाल और गुलाल दोऊ -पद्माकर
- एतौ कियौ कहा री मैया -सूरदास
- एतौ हठ अब छाँड़ि मानि री -सूरदास
- एरक
- एरक (बहुविकल्पी)
- एरक (सर्प)
- एरका
- एरावतवर्ष
- एरी मैं खड़ी निहारूँ बाट -मीराँबाई
- एरे सुंदर साँवरे -सूरदास
- एलपत्र
- एलापत्र
- एलापत्र नाग
- एहो नंदलाल ऐसी व्याकुल परी है बाल -पद्माकर
- ऐ ब्रजचंद गोविंद गोपाल -पद्माकर
- ऐंद्र अस्त्र
- ऐंद्रास्त्र
- ऐक्ष्वाकी
- ऐन्द्र अस्त्र
- ऐन्द्रास्त्र
- ऐन्धनाग्नि
- ऐरावत
- ऐरावत (बहुविकल्पी)
- ऐरावत खंड
- ऐरावत खण्ड
- ऐरावत देश
- ऐरावत सर्प
- ऐरावतनाग
- ऐल
- ऐला
- ऐश्वर्य
- ऐश्वर्य (महाभारत संदर्भ)
- ऐषीक शस्त्र
- ऐसी कब करिहौ गोपाल -सूरदास
- ऐसी कहौ बनिज कौं अटकीं -सूरदास
- ऐसी कहौ रँगीले लाल -सूरदास
- ऐसी कुँवरि कहाँ तुम पाई -सूरदास
- ऐसी कृपा करो नहिं काहूँ -सूरदास
- ऐसी को करी अरु भक्त कीजै- सूरदास
- ऐसी को करी अरु भक्त कीजै -सूरदास
- ऐसी को खेलै तोसौ होरी -सूरदास
- ऐसी को सकै करि तुम बिन मुरारी -सूरदास
- ऐसी को सकै करि बिन मुरारी -सूरदास
- ऐसी कौ सकैं करि बिन मुरारी -सूरदास
- ऐसी जो पावस रितु प्रथम (व्याख्या) -सूरदास
- ऐसी जो पावस रितु प्रथम -सूरदास
- ऐसी प्रीति कौ बलि जाउँ -सूरदास
- ऐसी बिधि नंदलाल -सूरदास
- ऐसी रिस तोकौं नँदरानी -सूरदास
- ऐसी रिस मैं जो धरि पाऊँ -सूरदास
- ऐसी रिस मैं जौ धरि पाऊँ -सूरदास
- ऐसी री निधरक तू राधा -सूरदास
- ऐसी लगन लगाइ कहां तूं जासी -मीराँबाई
- ऐसी सुनियत हिरदै माहँ -सूरदास
- ऐसी ही कारेन की रीति -सूरदास
- ऐसे आपुस्वारथी नैन -सूरदास
- ऐसे और बहुत खल तारे -सूरदास
- ऐसे कहौ निदरि मुरली सौं -सूरदास
- ऐसे कान्ह भक्त हितकारी -सूरदास
- ऐसे को सकै करि तुम बिन मुरारी -सूरदास
- ऐसे गुन हरि के री माई -सूरदास
- ऐसे जन धूत कहावत -सूरदास
- ऐसे जन बेसरम कहावत -सूरदास
- ऐसे दिन बिधना कब करिहै -सूरदास
- ऐसे नंदराइ के बारे -सूरदास
- ऐसे निठुर नही जग कोई -सूरदास
- ऐसे निठुर नहीं जग कोई -सूरदास
- ऐसे प्रभु अनाथ के स्वामी -सूरदास
- ऐसे बस्य न काहुहिं कोऊ -सूरदास
- ऐसे बादर ता दिन -सूरदास
- ऐसे बादर ता दिन आए -सूरदास
- ऐसे ब्रजपति कौ अति बिचित्र -सूरदास
- ऐसे मधुप की बलि जाउँ -सूरदास
- ऐसे मैं सुध्यौ न करै -सूरदास
- ऐसे समय जो हरि -सूरदास
- ऐसे समय जो हरि जू आवहिं -सूरदास
- ऐसे सुने नंदकुमार -सूरदास
- ऐसे स्याम बस्य राधा के -सूरदास
- ऐसे हम देखे नँदनंदन -सूरदास
- ऐसे हम नहिं जाने स्यामहि -सूरदास
- ऐसेहिं सुख सब रैनि बिहानी -सूरदास
- ऐसै और कौन पहिचानै -सूरदास
- ऐसै करत अनेक जन्म गए -सूरदास
- ऐसै जन जानन दीजै हो -मीराँबाई
- ऐसैं कहौ निदरि मुरली सौं -सूरदास
- ऐसैं जनि बोलहु नंद-लाला -सूरदास
- ऐसैं बसिऐ ब्रज की बीथिनि -सूरदास
- ऐसैहि ऐसैं रैनि बिहानी -सूरदास
- ऐसैहिं जनम बहुत बौरायौ -सूरदास
- ऐसो हाल मेरैं घर कीन्हौ -सूरदास
- ऐसौ एक कोद कौ हेत -सूरदास
- ऐसौ कोउ नाहिंनै सजनी -सूरदास
- ऐसौ कोउ नाहिंनै सजनी जो मोहनहिं मिलावै -सूरदास
- ऐसौ गोपाल निरखि -सूरदास
- ऐसौ जिय न धरौ रघुराइ -सूरदास
- ऐसौ जो पावस रितु प्रथम2 -सूरदास
- ऐसौ जो पावस रितु प्रथम -सूरदास
- ऐसौ जोग न हम पै होइ -सूरदास
- ऐसौ दान माँगियै नहिं जौ -सूरदास
- ऐसौ दान मांगियै नहिं जो -सूरदास
- ऐसौ पत्र पठायौ बसंत -सूरदास
- ऐसौ सुनियत -सूरदास
- ऐसौ सुनियत है द्वै -सूरदास
- ऐसौ सुनियत है द्वै माह -सूरदास
- ऐसौ सुनियत है द्वै सावन -सूरदास
- ऐसौं सुनियत द्वै बैसाख -सूरदास
- ऑडियो
- ऑडियो-वीडियो
- ओघ
- ओघवती
- ओघवती (ओघवान कन्या)
- ओघवती (बहुविकल्पी)
- ओघवती नदी
- ओघवान
- ओज
- ओज (बहुविकल्पी)
- ओज (लक्ष्मणा के पुत्र)
- ओज (लक्ष्मणा पुत्र)
- ओढूँ लज्या चीर -मीराँबाई
- ओधरथ
- ओप भरी कंचुकी उरोजन पर ताने कसी -पद्माकर
- ओम, तत् और सत् के प्रयोग की व्याख्या
- ओम नमो भगवते वासुदेवाय -पं. जसराज
- ओल्हर आई हो घन घटा -सूरदास
- ओळूँ थारी आवै हो महाराजा अबिनासी -मीराँबाई
- ओशिज
- ओषदश्व