ऐसेहिं सुख सब रैनि बिहानी।
भोर भऐ ब्रज धाम चले, दोउ, मन मन नारि सिहानी।।
प्यारी गई बृषभानु-पुरा-तन, स्याम जात नँद धाम।
सुखमा महल द्वारही ठाढ़ी, उन देखी वह बाम।।
प्रात चले बन तै ब्रज आए, मन मन करत बिचार।
सुनहु 'सूर' ठठकत सकुचत गए, ता गृह नंद कुमार।।2629।।