ए हो मेरी प्रानपियारी। भोरहिं खेलन कहाँ सिधारी।।
कुकुम भाल तिलक किन कीन्हौ। किन मृगमद कौ विंदा दीन्हौ।।
- छंद
बिंदा जु मृगमद दियौ माथै निरखि ससिसंसय परयौ।
इहिं सरद निसि के कलापूरन मनौ मनदर्पहिं हरयौ।।
हेरि मुख हसि कहति जननी अलकबेनी किन कई।
‘सूर’ के प्रभु मोहिं अचरज रची किन मनमथ भई।।
नंदमहर की घरनि जसोवै। फिरि फिरि मेरे मुखतन जोवै।।
खेलत बोलि निकट बैठारी। कछु मन मैं आनंद कियौ भारी।।