एइ दोउ बसुदेव के ढोटा।
गौर स्याम नट नील पीट पट, कल हंसनि के जोटा।।
कुंडल एक बाम स्रुति जाकै, सो रोहिनि को अस।
उर वनमाल देवकी कौ सुत, जाहि डरत है कस।।
लै राखे ब्रज सखा नंद गृह, बालक भेष दुराइ।
सम बल ये सिरात दृग देखत, अब प्रगटे है आइ।।
केसी, अघ, पूतना, निपाती, लीला गुननि अगाध।
'सूरदास' प्रभु प्रगट हरन खल, अभय करन सुर साध।।3043।।