विरह-पदावली -सूरदास
(कोई गोपी कह रही है- सखी!) यदि ऐसी वर्षा-ऋतु में श्यामसुन्दर पूर्व का स्मरण करके आ जाते! (ये) विविध रंगों के मनोहर वेश वाले अनेक बादल आकाश में सबसे अधिक शोभा देते हैं और इसी समय (ये) उड़ते हुए पक्षी, बगुलों का समूह तथा बोलते हुए पपीहे और मयूर अति शोभावान् लगते हैं। बिजली और बादल का शब्द भी अनेक प्रकार से चित्त में रुचि (उमंग) उत्पन्न करते हैं। (देखो, आज मेघरूपी) प्रियतम का मिलन समझकर पृथ्वी के शरीर पर तृणरूपी रोम पुलकित हो रहे हैं और वियोगिनी श्रेष्ठ लताएँ भी वृक्ष (रूप) अपने पतियों को पहचानकर मिल रही हैं। हंस, तोता, कोकिल, मैना तथा भौंरे आदि नाना प्रकार के शब्द करते हैं; (क्योंकि आज) प्रसन्नता से मेघमण्डल द्वारा वर्षा होने के कारण इन पक्षियों का शोक दूर हो गया है। कुटज, कुन्द, कदम्ब, कचनार, पीला कनैर, सुन्दर कमल, केतकी, लाल कनैर, बेला आदि अनेक प्रकार के निर्मल पुष्प सुन्दर लग रहे हैं; क्योंकि उनमें (आज) घने पत्ते कलियों से भूषित हैं, उनके पुष्पों से उत्तम सुगन्ध आ रही है। उन्हें निकट से नेत्रों द्वारा देखकर चित्त में श्यामसुन्दर के मिलने की आशा (उमंग) उठती है। मनुष्य (ही नहीं), हिरन, पशु-पक्षी आदि और भी जो बहुत-से नामों वाले प्राणी अपने स्थान से च्युत हैं- पृथक् हैं, वे भी (वर्षा में) अपने देश को स्मरण कर और विदेश (दूसरे देशों) को छोड़कर सभी अपने-अपने घर आ जाते हैं; किंतु नन्दनन्दन पास (मथुरा में) रहते हुए भी किस कारण से अपना निवास स्थान ब्रज भूल गये। उसका कारण मन में सोचती हैं, पर वह विचार में नहीं आता। वे सुन्दर हैं, सब कुछ जानने वाले हैं तथा हमारे परम सुहृद् (हितैषी भी) हैं। वे मनोहर गतिवाले हैं, (हमेशा उनके मुख-कमल पर) मन्द-मन्द हास्य खिला करता है और कपोलों पर हिलते हुए चंचल कुण्डलों की आभा भी बहुत सुन्दर लगती थी। (वे) हाथ में वंशी लेकर अनेक प्रकार से बजाते थे, उनके चारों ओर गोप-बालक रहते थे। वह शुभ दिन कब होगा, जब हम नेत्रों से फिर उनकी वही बालक्रीड़ा देखेंगी? इस प्रकार (वे) विरहिणी गोपियाँ वियोग से (इस भाँति) बार-बार अत्यन्त व्याकुल होती हैं, जैसे वायु के वेग से चंचल दीपक की फीकी ज्योति हो। सूरदास जी कहते हैं- हे कृपालु! उनका विलाप विश्वासपूर्वक सुनकर दर्शन दे (उनका) दुःख दूर कीजिये। यही प्रेम की रीति है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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