ऐसौ जोग न हम पै होइ।
आँखि मूँदि कह पावै ढूँढे, अँधरे ज्यौ टकटोइ।।
भसम लगावन कहत जु हमकौ, अंग कुकुमा धोइ।
सुनि कै वचन तुम्हारे ऊधौ, नैना आवत रोइ।।
कुतल कुटिल मुकुट कुंडल छवि, रही जु चित मैं पोइ।
‘सूरज’ प्रभु बिनु प्रान रहै नहि, कोटि करौ किन कोइ।।3794।।