ऊधौ हम कत हरि तै न्यारी।
तब तौ वेद रिचा बौरानी, अब व्रजवास दुलारी।
तब हरि निरगुन अगम अगोचर, चले जु चाल हमारी।
अब निज ध्यान हमारौ मोहन, उनहूँ हम न बिसारी।।
चाम के दाम चलावत तुम तौ, कुबिजा के अधिकारी।
‘सूर’ स्याम हम सब दिन एकै, भुरै लेहु दिन चारी।।4036।।