ऐसो हाल मेरैं घर कीन्हौ, हौं ल्याई तुम पास पकरिकै।
फोरि भाँड़ दधि माखन खायौ, उबन्यौ सो डान्यौ रिस करिकै।
लरिका छिरकि मही सौं देखै उपज्यो पूत सपूत महरि कै।
बड़ौ माट धर धन्यौ जुगानि कौ, टूक–टूक कियौ सखनि पकरि कै।
पारि सपाट चले तब पाए, हौं ल्याई तमहीं पै धरि कै।
सूरदास प्रभु कौं यौं राखौं, ज्यौं राखिऐ गज मत्त जकरि कै।।318।।