ऐसौ गोपाल निरखि, तन-मन-धन वारौं।
नव किसोर, मधुर मुरति, सोभा उर धारौं।।
अरुन-तरुन कमल-नैन मुरली कर राजै।
ब्रज-जन-पन-हरन बेनु मधुर-मधुर बाजै।।
ललित बर त्रिभंग सु तनु, बनमाला सोहै।
अति सुदेस कुसुम-पाग, उपमा कौं को है।।
चरन रुनित नूपुर, कटि किंकिनि कल कूजै।
मकराकृत-कुंडल-छबि सूर कौन पूजै।।662।।