ऊधौ यह हरि कहा करयौ।
राज काज चित दियौ साँवरै, गोकुल क्यौ बिसरयौ?
जौ लौ रहे घोष मैं, तौलौ संतत सेवा कीन्ही।
छिन इक परस भएँ ऊखल सौ, बहुत मानि जिय लीन्ही।।
अब किन कोटि बरै ब्रजनायक, अनतहिं राजकुमार।
कहियौ नंद पिता कहँ पैहै, कहँ जसुमति महतारी।।
कहँ गोधन, कहँ गोपवृंद सब, कहँ माखन कौ खइबौ।
'सूरदास' अब सोइ करौ जिहिं, होइ कान्ह कौ अइबौ।।4766।।