ऋषियों द्वारा कुरुक्षेत्र की सीमा और महिमा का वर्णन

महाभारत शल्य पर्व में गदा पर्व के अंतर्गत 53वें अध्याय में वैशम्पायन ने ऋषियों द्वारा कुरुक्षेत्र की सीमा और महिमा के वर्णन के विषय में बताया है, जो इस प्रकार है[1]-

कुरुक्षेत्र की सीमा और महिमा का वर्णन

ऋषियों ने कहा- बलराम जी! समन्तपन्चक क्षेत्र सनातन तीर्थ है। इसे प्रजापति की उत्तर वेदी कहते हैं। वहाँ प्राचीनकाल में महान वरदायक देवताओं ने बहुत बड़े यज्ञ का अनुष्ठान किया था। पहले अमित तेजस्वी बुद्धिमान राजर्षिप्रवर महात्मा कुरु ने इस क्षेत्र को बहुत वर्षों तक जोता था, इसलिये इस जगत में इसका नाम कुरुक्षेत्र प्रसिद्ध हो गया। बलराम जी ने पूछा- तपोधनों! महात्मा कुरु ने इस क्षेत्र को किसलिये जोता था? मैं आप लोगों के मुख से यह कथा सुनना चाहता हूँ। ऋषि बोले- राम! सुना जाता है कि पूर्वकाल में सदा प्रत्येक शुभ कार्य के लिये उद्यत रहने वाले कुरु जब इस क्षेत्र को जोत रहे थे, उस समय इन्द्र ने स्वर्ग से आकर इसका कारण पूछा। इन्द्र ने प्रश्न किया- राजन! यह महान प्रयत्न के साथ क्या हो रहा है? राजर्षे! आप क्या चाहते हैं, जिसके कारण यह भूमि जोत रहे हैं? कुरु ने कहा- शतक्रतो! जो मनुष्य इस क्षेत्र में मरेंगे, वे पुण्यात्माओं के पाप रहित लोकों में जायंगे। तब इन्द्र उनका उपहास करके स्वर्गलोक में चले गये। राजर्षि कुरु उस कार्य से उदासीन न होकर वहाँ की भूमि जोतते ही रहे। शतक्रतु इन्द्र अपने कार्य से विरत न होने वाले कुरु के पास बारंबार आते और उन से पूछ-पूछ कर प्रत्येक बार उनकी हंसी उड़ाकर स्वर्गलोक में चले जाते थे। जब राजा कुरु कठोर तपस्या पूर्वक पृथ्वी को जोतते ही रह गये, तब इन्द्र ने देवताओं से राजर्षि कुरु की वह चेष्टा बतायी। यह सुनकर देवताओं ने सहस्र नेत्रधारी इन्द्र से कहा- ‘शक्र! यदि सम्भव हो तो राजर्षि कुरु को वर देकर अपने अनुकूल किया जाय। यदि यहाँ मरे हुए मानव यज्ञों द्वारा हमारा पूजन किये बिना ही स्वर्गलोक में चले जायंगे, तब तो हम लोगों का भाग सर्वथा नष्ट हो जायगा’। तब इन्द्र ने वहाँ से आकर राजर्षि कुरु से कहा- ‘नरेश्वर! आप व्यर्थ कष्ट क्यों उठाते हैं? मेरी बात मान लीजिये। महामते! राजेन्द्र! जो मनुष्य और पशु-पक्षी यहाँ निराहार रहकर देह त्याग करेंगे अथवा युद्ध में मारे जायंगे, वे स्वर्गलोक के भागी होंगे’।

तब राजा कुरु ने इन्द्र से कहा- ‘देवराज! ऐसा ही हो’ तदनन्तर कुरु से विदा ले बलसूदन इन्द्र फिर शीघ्र ही प्रसन्न चित्त से स्वर्गलोक में चले गये। यदुश्रेष्ठ! इस प्रकार प्राचीन काल में राजर्षि कुरु ने इस क्षेत्र को जोता और इन्द्र तथा ब्रह्मा आदि देवताओं ने इसे वर देकर अनुगृहीत किया। भूतल का कोई भी स्थान इससे बढ़कर पुण्यदायक नहीं होगा। जो मनुष्य यहाँ रहकर बड़ी भारी तपस्या करेंगे, वे सब लोग देहत्याग के पश्चात् ब्रह्मलोक में जायंगे। जो पुण्यात्मा मानव वहाँ दान देंगे, उनका वह दान शीघ्र ही सहस्रगुना हो जायगा। जो मानव शुभ की इच्छा रखकर यहाँ नित्य निवास करेंगे, उन्हें कभी यम का राज्य नहीं देखना पड़ेगा। जो नरेश्वर यहाँ बड़े-बड़े यज्ञों का अनुष्ठान करेंगे, वे जब तक यह पृथ्वी रहेगी, तब तक स्वर्गलोक में निवास करेंगे। हलायुध! स्वयं देवराज इन्द्र ने कुरुक्षेत्र के सम्बन्ध में यहाँ जो गाथा गायी है, उसे आप सुनिये।[1] ‘कुरुक्षेत्र से वायु द्वारा उड़ायी हुई धूलियां भी यदि ऊपर पड़ जायं तो वे पापी मनुष्य को भी परम पद की प्राप्ति कराती हैं। श्रेष्ठ देवताओं! यहाँ ब्राह्मणशिरोमणि तथा नृग आदि मुख्य-मुख्य पुरुषसिंह नरेश महान यज्ञों का अनुष्ठान करके देहत्याग के पश्चात् उत्तम गति को प्राप्त हुए हैं। तरन्तुक, अरन्तुक, रामहंद ( परशुराम कुण्ड) तथा मचक्रुक -इनके बीच का जो भूभाग है, यही समन्तपंचक एवं कुरुक्षेत्र है। इसे प्रजापति की उत्तर वेदी कहते हैं। यह महान पुण्यप्रद, कल्याणकारी, देवताओं का प्रिय एवं सर्वगुणसम्पन्न तीर्थ है। अतः यहाँ रणभूमि में मारे गये सम्पूर्ण नरेश सदा पुण्यमयी अक्षय गति प्राप्त करेंगे’। ब्रह्मा आदि देवताओं सहित साक्षात इन्द्र ने ऐसी बातें कही थीं तथा ब्रह्मा, विष्णु और महादेव जी ने इन सारी बातों का अनुमोदन किया था।[2]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 53 श्लोक 1-21
  2. महाभारत शल्य पर्व अध्याय 53 श्लोक 22-26

सम्बंधित लेख

महाभारत शल्य पर्व में उल्लेखित कथाएँ


शल्य और दुर्योधन वध के समाचार से धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना | धृतराष्ट्र को विदुर द्वारा आश्वासन देना | दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना | धृतराष्ट्र का संजय से युद्ध का वृत्तान्त पूछना | कर्ण के मारे जाने पर पांडवों के भय से कौरव सेना का पलायन | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदलों का वध | अर्जुन द्वारा कौरवों की रथसेना पर आक्रमण | दुर्योधन का अपने सैनिकों को समझाकर पुन: युद्ध में लगाना | कृपाचार्य का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना | दुर्योधन का कृपाचार्य को उत्तर देना | दुर्योधन का संधि स्वीकर न करके युद्ध का ही निश्चय करना | अश्वत्थामा का शल्य को सेनापति बनाने का प्रस्ताव | दुर्योधन के अनुरोध पर शल्य का सेनापति पद स्वीकार करना | शल्य के वीरोचित उद्गार | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना | उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना | कौरव-पांडवों की बची हुई सेनाओं की संख्या का वर्णन | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध | पांडव वीरों के भय से कौरव सेना का पलायन | नकुल द्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध | शल्य का पराक्रम | कौरव-पांडव योद्धाओं के द्वन्द्वयुद्ध | भीम के द्वारा शल्य की पराजय | भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध | दुर्योधन द्वारा चेकितान का वध | दुर्योधन की प्रेरणा से कौरव सैनिकों का पांडव सेना से युद्ध | युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रों के साथ शल्य का युद्ध | मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध | अश्वत्थामा के द्वारा सुरथ का वध | दुर्योधन और धृष्टद्युम्न का युद्ध | शल्य के साथ नकुल और सात्यकि आदि का घोर युद्ध | पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध | भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय | युधिष्ठिर द्वारा शल्य की पराजय | भीम द्वारा शल्य के घोड़े और सारथि का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के भाई का वध | सात्यकि और युधिष्ठिर द्वारा कृतवर्मा की पराजय | मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन | पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा | भीम द्वारा इक्कीस हज़ार पैदलों का संहार | दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना | धृष्टद्युम्न द्वारा शाल्व के हाथी का वध | सात्यकि द्वारा शाल्व का वध | सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय | दुर्योधन का पराक्रम | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घोर संग्राम | कौरव पक्ष के सात सौ रथियों का वध | उभय पक्ष की सेनाओं का मर्यादा शून्य घोर संग्राम | शकुनि का कूट युद्ध और उसकी पराजय | अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा | अर्जुन द्वारा कौरव रथियों की सेना का संहार | अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार | अश्वत्थामा आदि के द्वारा दुर्योधन की खोज | सात्यकि द्वारा संजय का पकड़ा जाना | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध | भीम के द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध | अर्जुन के द्वारा सुशर्मा का उसके पुत्रों सहित वध | भीम के द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का अन्त | सहदेव के द्वारा उलूक का वध | सहदेव के द्वारा शकुनि का वध
ह्रदप्रवेश पर्व
बची हुई समस्त कौरव सेना का वध | संजय का क़ैद से छूटना | दुर्योधन का सरोवर में प्रवेश | युयुत्सु का राजमहिलाओं के साथ हस्तिनापुर में जाना
गदा पर्व
अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा की सरोवर में दुर्योधन से बातचीत | युधिष्ठिर का सेना सहित सरोवर पर जाना | कृपाचार्य आदि का सरोवर से दूर हट जाना | युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण की बातचीत | सरोवर में छिपे दुर्योधन के साथ युधिष्ठिर का संवाद | युधिष्ठिर के कहने से दुर्योधन का सरोवर से बाहर आना | दुर्योधन का किसी एक पांडव से गदायुद्ध हेतु तैयार होना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को फटकारना | श्रीकृष्ण द्वारा भीमसेन की प्रशंसा | भीम और दुर्योधन में वाग्युद्ध | बलराम का आगमन और सम्मान | भीम और दुर्योधन के युद्ध का आरम्भ | बलदेव की तीर्थयात्रा | प्रभासक्षेत्र के प्रभाव तथा चंद्रमा के शापमोचन की कथा | उदपान तीर्थ की उत्पत्ति तथा त्रित मुनि के कूप में गिरने की कथा | त्रित मुनि का यज्ञ | त्रित मुनि का अपने भाइयों का शाप देना | वैशम्पायन द्वारा विभिन्न तीर्थों का वर्णन | नैमिषारण्य तीर्थ का वर्णन | बलराम का सप्त सारस्वत तीर्थ में प्रवेश | सप्तसारस्वत तीर्थ की उत्पत्ति | मंकणक मुनि का चरित्र | औशनस एवं कपालमोचन तीर्थ की माहात्म्य कथा | रुषंगु के आश्रम पृथूदक तीथ की महिमा | आर्ष्टिषेण एवं विश्वामित्र की तपस्या तथा वरप्राप्ति | अवाकीर्ण तीर्थ की महिमा और दाल्भ्य की कथा | यायात तीर्थ की महिमा और ययाति के यज्ञ का वर्णन | वसिष्ठापवाह तीर्थ की उत्पत्ति | ऋषियों के प्रयत्न से सरस्वती नदी के शाप की निवृत्ति | सरस्वती नदी के जल की शुद्धि | अरुणासंगम में स्नान से राक्षसों और इन्द्र का संकटमोचन | कुमार कार्तिकेय का प्राकट्य | कुमार कार्तिकेय के अभिषेक की तैयारी | स्कन्द का अभिषेक | स्कन्द के महापार्षदों के नाम, रूप आदि का वर्णन | स्कन्द की मातृकाओं का परिचय | स्कन्द देव की रणयात्रा | स्कन्द द्वारा तारकासुर, महिषासुर आदि दैत्यों का सेनासहित संहार | वरुण का अभिषेक | अग्नितीर्थ, ब्रह्मयोनि और कुबेरतीर्थ की उत्पत्ति का प्रसंग | श्रुतावती और अरुन्धती के तप की कथा | इन्द्रतीर्थ, रामतीर्थ, यमुनातीर्थ और आदित्यतीर्थ की महिमा | असित देवल तथा जैगीषव्य मुनि का चरित्र | दधीच ऋषि तथा सारस्वत मुनि के चरित्र का वर्णन | वृद्ध कन्या का चरित्र | वृद्ध कन्या का शृंगवान से विवाह तथा स्वर्गगमन | ऋषियों द्वारा कुरुक्षेत्र की सीमा और महिमा का वर्णन | प्लक्षप्रस्रवण आदि तीर्थों तथा सरस्वती की महिमा | बलराम का नारद से कौरवों के विनाश का समाचार सुनना | भीम-दुर्योधन का युद्ध देखने के लिए बलराम का जाना | बलराम की सलाह से सबका कुरुक्षेत्र के समन्तपंचक तीर्थ में जाना | समन्तपंचक तीर्थ में भीम और दुर्योधन में गदायुद्ध की तैयारी | दुर्योधन के लिए अपशकुन | भीमसेन का उत्साह | भीम और दुर्योधन का वाग्युद्ध | भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध | कृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के संकेत से भीम द्वारा दुर्योधन की जाँघें तोड़ना | दुर्योधन के धराशायी होने पर भीषण उत्पात प्रकट होना | भीमसेन द्वारा दुर्योधन का तिरस्कार | युधिष्ठिर का भीम को अन्याय करने से रोकना | युधिष्ठिर का दुर्योधन को सान्त्वना देते हुए खेद प्रकट करना | क्रोधित बलराम को कृष्ण का समझाना | युधिष्ठिर के साथ कृष्ण और भीम की बातचीत | पांडव सैनिकों द्वारा भीम की स्तुति | कृष्ण के आक्षेप पर दुर्योधन का उत्तर | कृष्ण द्वारा पांडवों का समाधान | पांडवों का कौरव शिबिर में पहुँचना | अर्जुन के रथ का दग्ध होना | पांडवों का कृष्ण को हस्तिनापुर भेजना | कृष्ण का हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र और गांधारी को आश्वासन देना | कृष्ण का पांडवों के पास लौटना | दुर्योधन का संजय के सम्मुख विलाप | दुर्योधन का वाहकों द्वारा अपने साथियों को संदेश भेजना | दुर्योधन को देखकर अश्वत्थामा का विषाद एवं प्रतिज्ञा करना | अश्वत्थामा का सेनापति पद पर अभिषेक

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः