ऐसी को सकै करि बिन मुरारी -सूरदास

सूरसागर

सप्तम स्कन्ध

Prev.png
राग मारू



ऐसी को सकै करि बिन मुरारी।
क‍हत प्रहलाद के धारि नरसिंह बपु, निकसि आए तुरत खंभ फारी।
हिरनकस्यप निरखि रूप चक्रित भयौ, बहुरि कर लै गदा असुर धायौ।
हरि गदा-सुद्ध तासो कियो भलीविधि, बहुरि संध्या समय होन आयौ।
गहि असुर धइ, पुनि नाइ निज जंध पर, नखनि सौ उदर डारयौ बिदारी ।
देखि यह सुरनि वर्ष करी पुहुप की, सिद्ध-गंधर्व जय-धुनि उचारी।
बहूरि बहु भाइ प्रहलाद अस्तुति करी। ताहि दै राज बैकुंठ सिघाए।
भक्त कै हेत हरि धन्यौ नरसिंह-बपु सूर जन जानि यह सरन आए।।6।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः