ऐसी को सकै करि बिन मुरारी।
कहत प्रहलाद के धारि नरसिंह बपु, निकसि आए तुरत खंभ फारी।
हिरनकस्यप निरखि रूप चक्रित भयौ, बहुरि कर लै गदा असुर धायौ।
हरि गदा-सुद्ध तासो कियो भलीविधि, बहुरि संध्या समय होन आयौ।
गहि असुर धइ, पुनि नाइ निज जंध पर, नखनि सौ उदर डारयौ बिदारी ।
देखि यह सुरनि वर्ष करी पुहुप की, सिद्ध-गंधर्व जय-धुनि उचारी।
बहूरि बहु भाइ प्रहलाद अस्तुति करी। ताहि दै राज बैकुंठ सिघाए।
भक्त कै हेत हरि धन्यौ नरसिंह-बपु सूर जन जानि यह सरन आए।।6।।