ऐसे निठुर नही जग कोई।
जैसे निठुर भए डोलत है, मेरे नैना दोई।।
निठुर रहत ज्यौ ससि चकोर कौ, वै उन बिनु अकुलाही।
निठुर रहत दीपक पतंग ज्यो, उड़ि परि परि मरि जाही।।
निठुर रहत जैसै जल मीनहिं, तैसिय दसा हमारी।
'सूरदास' धिक धिक है तिनकौ, जिनिहिं न पीर परारी।।2345।।